2122 1212 22
गुल जो सूखा किताब में देखा ।
आपको फिर से ख़्वाब में देखा ।।
बारहा चाँद की नज़ाक़त को ।
झाँक कर वह नकाब में देखा ।।
मैकदे में गया हूँ जब भी मैं ।
तेरा चेहरा शराब में देखा ।।
वस्ल जब भी लगा मुनासिब तो।
कोई हड्डी कबाब में देखा ।।
तोड़ पाता उसे भला कैसे ।
हुस्न उसका गुलाब में देखा ।।
डाल कर फूल राह में सबके ।
मैंने पत्थर जबाब में देखा ।।
लुट गईं रोटियां गरीबों की ।
हादसा इंकलाब में देखा ।।
तेरे आने का जिक्र होते ही ।
रंग आता शबाब में देखा ।।
कौन कहता है तुम नशे में हो ।
मैंने तुमको हिसाब में देखा ।।
हैं मुहब्बत बड़ी या फिर दौलत ।
आपके इंतखाब में देखा ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
नवीन जी,"कबाब में हड्डी" एक मुहावरा है, इसे हड्डियों करने से बात नहीं बनेगी,इस शैर को ख़ारिज करना ही मुनासिब होगा ।
'कोई हड्डी कबाब में देखा'
इस मिसरे को दुरुस्त कर दिखाएँ ।
जी सही है, मगर कुछ और उदाहरण हैं, मैंने लोगों को देखा, मैंने लोग देखे, मैंने घर को जलता हुआ देखा, मैंने घर जलता हुआ देखा, मैंने लाल क़िले को देखा, मैंने लाल क़िला देखा. बस यूँ ज्ञान वर्धन के लिए पूछ रहा हूँ. सादर.
'मैंने हड्डी को देखा' इस वाक्य में 'को' शब्द भर्ती का है, सहीह वाक्य "मैंने हड्डी देखी" सहीह वाक्य है ।
आदरणीय समर साहब, सही कह रहे हैं आप, "मैं हड्डी देखा" शायद ये वाक्य ग़लत है, "मैंने हड्डी को देखा" या "मैंने हड्डी देखी" ये सही है. सादर
राज सहिब,'हड्डी' शब्द स्त्रीलिंग है, तो उसके साथ 'देखा'?
ग़ज़ल के लिए त्रिपाठी जी बधाई स्वीकार करें.
जबाब शब्द को भी सहीह करने की ज़रुरत है, जवाब. सादर
(मैं)कोई हड्डी कबाब में देखा
क्या ऐसा हो सकता है? बस एक जिज्ञासा है समर साहब. मतलब मैं छुपा है, मैंने नहीं. सादर.
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