श्री सूर्य नमस्कार मन्त्र
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ॐ मित्राय नम:॥1॥
ॐ रवये नम:॥2॥
ॐ सूर्याय नम:॥3॥
ॐ भानवे नम:॥4॥
ॐ खगाय नम:॥5॥
ॐ पूष्णे नम:॥6॥
ॐ हिरण्यगर्भाय नम:॥7॥
ॐ मरीचये नम:॥8॥
ॐ आदित्याय नम:॥9॥
ॐ सवित्रे नम:॥10॥
ॐ अर्काय नम:॥11॥
ॐ भास्कराय नम:॥12॥
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श्री गायत्री मन्त्र
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ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यम्
भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् ॥
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स्नान मन्त्र
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गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु ॥
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श्री दुर्गा चालीसा
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नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो अम्बे दुख हरनी ॥
निराकार है ज्योति तुम्हारी । तिहुँ लोक फैली उजियारी ॥
शशि ललाट मुख महा विशाला । नेत्र लाल भृकुटी विकराला ॥
रुप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ॥
तुम संसार शक्ति लय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
अन्नपूरना हुई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥
प्रलय काल सब नाशन हारी । तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावैं । ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावैं ॥
रुप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्धि ॠषि मुनिन उबारा ॥
धरा रुप नरसिंह को अम्बा । परगत भई फाड़ कर खम्बा ॥
रक्षा करि प्रहलाद बचायो । हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं । श्री नारायण अंग समाहीं ॥
क्षीरसिंधु में करत विलासा । दयासिंधु दीजै मन आसा ॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ॥
मातंगी धूमावती माता । भुवनेश्वरि बगला सुख दाता ॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी । क्षिन्न लाल भवदुख निवारिणी ॥
केहरि वाहन सोहे भवानी ।लांगुर वीर चलत अगवानी ।।
कर में खप्पर खड़ग विराजै । जाको देख काल डर भाजै ॥
सोहे अस्त्र और त्रिसूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत । तिहुँ लोक में डंका बाजत ॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन संहारे ॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥
रुप कराल काली को धारा । सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब । भई सहाय मातु तुम तब तब ॥
अमर पुरी औरों सब लोका । तब महिमा सब रहे अशोका ॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजैं नर नारी ॥
प्रेम भक्ति से जो जस गावै । दुःख दारिद्र निकट नहीं आवै ॥
ध्यावें तुम्हें जो नर मन लाई । जन्म मरण ताको छुट जाई ॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥
शंकर आचारज तप कीनों । काम क्रोध जीति सब लीनों ॥
निशि दिन ध्यान धरो शंकर को । काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥
शक्ति रुप को मरम न पायो । शक्ति गई तब मन पछतायो ॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी । जै जै जै जगदम्ब भवानी ॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा । दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥
मोको मात कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो ॥
आशा तृष्णा निपट सतावै । रिपु मूरख मोहि अति डर पावै ॥
शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरौ इकचित तुम्हें भवानी ॥
करो कृपा हे मातु दयाला । ॠद्धि सिद्धि दे करहु निहाला ॥
जब लगि जियौं दया फल पाऊँ । तुम्हरो जस मैं सदा सुनाऊँ ॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै । सब सुख भोग परम पद पावै ॥
देवीदास शरण निज जानी । करहु कृपार जगदम्बा भवानी ॥
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श्री हनुमान चालीसा
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दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
बुध्दिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ॥
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपिस तिहुँ लोक उजागर ॥
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि-पुत्र पवन सुत नामा ॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुंडल कुंचित केसा ॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै कांधे मूँज जनेऊ साजै ॥
संकर सुवन केसरीनंदन । तेज प्रताप महा जग बंदन ॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लषन सीता मन बसिया ॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचंद्र के काज सँवारे ॥
लाय सजीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥
तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रच्छक काहू को डर ना ॥
आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥
भूत पिसाच निकट नहिँ आवै । महाबीर जब नाम सुनावै ॥
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥
संकट तें हनुमान छुडावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥
और मनोरथ जो कोइ लावै । सोइ अमित जीवन फल पावै ॥
चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
साधु संत के तुम रखवारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥
तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥
अंत काल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई ॥
और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेंइ सर्ब सुख करई ॥
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥
जै जै जै हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरु देव की नाईं ॥
जो सत बर पाठ कर कोई । छूटहि बंदि महा सुख होई ॥
जो यह पढ़ै हनुमान चलीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥
दोहा
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
राम लषन सीता सहित,हृदय बसहु सुर भूप ॥
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श्री शनि चालीसा
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॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल ।
दीनन के दुःख दूर करि , कीजै नाथ निहाल ॥1॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु , सुनहु विनय महाराज ।
करहु कृपा हे रवि तनय , राखहु जन की लाज ॥2॥
जयति जयति शनिदेव दयाला । करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै । माथे रतन मुकुट छवि छाजै ॥
परम विशाल मनोहर भाला । टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥
कुण्डल श्रवन चमाचम चमके । हिये माल मुक्तन मणि दमकै ॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा । पल बिच करैं अरिहिं संहारा ॥
पिंगल, कृष्णो, छाया, नन्दन । यम, कोणस्थ, रौद्र, दुःख भंजन ॥
सौरी, मन्द शनी दश नामा । भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ॥
जापर प्रभु प्रसन्न हवैं जाहीं । रंकहुं राव करैं क्षण माहीं ॥
पर्वतहू तृण होइ निहारत । तृणहू को पर्वत करि डारत ॥
राज मिलत वन रामहिं दीन्हयो । कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ॥
वनहुं में मृग कपट दिखाई । मातु जानकी गई चुराई ॥
लषणहिं शक्ति विकल करिडारा । मचिगा दल में हाहाकारा ॥
रावण की गति-मति बौराई । रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥
दियो कीट करि कंचन लंका । बजि बजरंग बीर की डंका ॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा । चित्र मयूर निगलि गै हारा ॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी । हाथ पैर डरवायो तोरी ॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो । तेलहिं घर कोल्हू चलवायो ॥
विनय राग दीपक महँ कीन्हयों । तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों ॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी । आपहुं भरे डोम घर पानी ॥
तैसे नल पर दशा सिरानी । भूंजी-मीन कूद गई पानी ॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई । पारवती को सती कराई ॥
तनिक विकलोकत ही करि रीसा । नभ उड़ि गतो गौरिसुत सीसा ॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी । बची द्रोपदी होति उधारी ॥
कौरव के भी गति मति मारयो । युद्ध महाभारत करि डारयो ॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला । लेकर कूदि परयो पाताला ॥
शेष देव-लखि विनती लाई । रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना । जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ॥
जम्बुक सिह आदि नख धारी । सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं । हय ते सुख सम्पत्ति उपजावै ॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा । सिह सिद्ध्कर राज समाजा ॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै । मृग दे कष्ट प्राण संहारै ॥
जब आवहिं स्वान सवारी । चोरी आदि होय डर भारी ॥
तैसहि चारि चरण यह नामा । स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा ॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं । धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं ॥
समता ताम्र रजत शुभकारी । स्वर्ण सर्वसुख मंगल भारी ॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै । कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला । करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई । विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत । दीप दान दै बहु सुख पावत ॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा । शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ॥
॥ दोहा ॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों 'भक्त' तैयार ।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ॥
॥इति श्री शनि चालीसा॥
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शान्ति मन्त्र
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ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति: ।
वनस्पतये: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:
सर्वँ शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि ॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥
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