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'अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय (अतुकांत कविता)

सबको तो
डस रहे हैं, फंस रहे हैं
असरदार या बेअसर?
नकली या असली?
देशी, विदेशी या एनआरआई?
मुंह में सांप
हाथों में सांप
बदन में सांप

गले पड़े सांप
सिर पर सांप
सांपों के तालाबों से!
मानव समाज में
शब्दों, जुमलों, नारों,
फैशन, गहने या हथियार रूपेण!
या प्रतिशोध लक्षित
मानव-बम सम!
पर कितना असर
जनता पर, सरकार पर?
केवल घायल लोकतंत्र
सपेरों के मंत्र
यंत्र, इंटरनेट
और सोशल मीडिया!
पनीले या ज़हरीले?
कहां से निकलते, कहां-कैसे पलते ?
वैश्वीकरण, व्यापारीकरण में
तरक़्क़ी की बरसात में
नई सदी के दौर में
सत्ता की होड़ में
अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय!


(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 9, 2018 at 6:17pm

मेरी इस रचना पर  अपना अमूल्य समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब।

Comment by Samar kabeer on July 24, 2018 at 11:57am

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी अतुकान्त कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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