साँझा चूल्हा - लघुकथा –
"रज्जो, यह तेरा देवर रोज रोज हमारी रसोई में थाली लिये बैठा क्यों दिखता है"?
"क्योंजी, क्या वह आपका भाई नहीं है "?
"मेरी बात का सीधा जवाब दे? बात को घुमा मत"?
"आप भी ना, दो रोटी खा जाता है और क्या करते हैं रसोई में"?
"वह तो मुझे भी पता है। पर हमारी रसोई में क्यों"?
"उसके दो रोटी खाने से हम कंगाल हो जायेंगे क्या"?
"बात रोटी की नहीं है , बात उसूल की है"?
"वह कहता है कि उसकी घरवाली के हाथ में स्वाद नहीं है"?
"घर के बँटवारे की ज़िद किस ने की थी? चूल्हा अलग किसने किया था? दोनों मियाँ बीबी ने बँटवारे के लिये नाक में दम कर रखा था”?
"वह गलती मान रहा है कि घरवाली के बहकावे में आ गया था"?
"उसने चूल्हा अलग किया था। अब अपने चूल्हे में जो मर्जी हो पकाये खाये"।
"आज तो वह रोने लगा था। कहता है कि भाभी चूल्हा साँझा कर लो"?
"ना रज्जो, भूल से भी हाँ मत कर देना। यह कोई गुड्डे गुड़िया का खेल नहीं है कि सुबह लड़ लिये और शाम को फिर एक"।
"आप भी ज़िद करके बैठ जाते हो। आपसे माफ़ी भी माँगने को तैयार है"।
"रज्जो, उसे साफ बोल दे कि अपनी घर गृहस्थी संभालो। हमेशा तो माँ बाप भी नहीं खिलाते। कभी कभार सब चलता है। ज़िंदगी तो अपने ही दम पर जीनी होती है"।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज जी।
लघुकथा तो बड़ी अच्छी है आदरणीय...बटवारे का दंश वाकई चुभन देता ही रहता है...
हार्दिक आभार आदरणीय डॉ आशुतोष जी। हम लोग तो बचपन एक सामूहिक परिवार में ही बिताये हैं इसलिये सम्मिलित परिवार का महत्व समझते हैं लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि जिस चीज के लाभ हैं उसके ही कुछ नुकसान भी होते हैं।यह भी हमने व्यक्तिगत रूप से भोगा है।सादर।
आदरणीय तेजवीर जी इस उम्दा लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई ...लेकिन घर में एक चूल्हा जले तो उसका आनंद कुछ और ही है लेकिन आपने जो लिखा है वह भी एक सच्चाई है सादर
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।
हार्दिक आभार आदरणीय अपर्णा शर्मा जी।आपने लघुकथा पर सुंदर विवेचनात्मक टिप्पणी की।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
बहुत ही उत्तम लघुकथा रची है आपने। और पंच लाइन भी सटीक प्रहार करती है। रिश्तों और संयुक्त परिवार का मोल भी समझाती है। आजकल अक्सर देखने में आता है कि रिश्ते और मेल-मिलान भी निहित स्वार्थों की पूर्ति तक सीमित होता जा रहा है। साँझे चूल्हे की आत्मीय भावना को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। बधाई।
हार्दिक आभार आदरणीय बबिता गुप्ता जी।
हार्दिक आभार आदरणीय नीता कसार जी।
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