संताप - लघुकथा –
"माधव, मुझे शाँति चाहिये। मेरा मन बहुत व्याकुल है।इस युद्ध के लिये मेरी अंतरात्मा मुझे कचोट्ती है"?
"क्या हुआ अर्जुन, तुम इतने निर्बल कैसे हो गये"?
"मित्र, युद्ध की विनाश लीला मुझे धिक्कारती है? मेरी आँखों के सामने उस विनाश की समस्त वीभत्स घटनांयें एक सैलाब की तरह मेरे मस्तिष्क को घेरे रहती हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे मेरे समूचे अस्तित्व को बहा ले जायेंगी और मुझे नेस्तनाबूद कर देंगी”?
“स्वयं को संभालो अर्जुन। तुम कायरों जैसा व्यवहार कर रहे हो”?
“माधव, मेरे देखते हुए मेरी स्वयं की भावी पीढ़ी नष्ट हो गयीऔर मैं कुछ न कर सका"?
"अर्जुन, जो कुछ हो गया, उसका विलाप करना मूर्खता है"?
"माधव, इस सब का दोषी हूँ मैं।अपना युद्ध कौशल दिखाने के लिये कितना लालायित रहता था मैं"?
"अर्जुन, युद्ध तुम्हारे ऊपर थोपा गया था।वह तुम्हारी मज़बूरी थी। युद्ध के परिणाम से तो तुम्हें युद्ध से पूर्व ही मैंने अवगत कराया था"।
"आपके उस दिशा निर्देश पर ही तो मैं इस महा विनाश का हिस्सेदार बना था। लेकिन उस युद्ध के दुष्परिणाम मुझे चैन से सोने नहीं देते"?
"अर्जुन, वर्तमान में जिओ। जो समक्ष है उसे भोगो। अतीत में जिओगे तो अशांत ही रहोगे"?
"माधव, यह कहने में बेहद सरल है लेकिन भोगने वाला ही जानता है कि कितनी असहनीय पीड़ा होती है"?
"तो क्या तुम यह कहना चाहते हो कि मैंने कभी कोई दुख या पीड़ा नहीं झेली"?
"शायद यही अर्थ हो सकता है मेरे कथन का"?
"अर्जुन, तुम मेरे प्रिय सखा हो। क्या मेरे बारे में इतना ही जानते हो? तो सुनो, मैंने कारागार में जन्म लिया। जन्म लेते ही मुझे मेरे माँ बाप से अलग कर दिया। मेरे सिर पर हर वक्त मृत्यु मँडराती थी। इसके बावज़ूद मैंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। किसी प्रकार का विलाप नहीं किया| अपने किसी प्रियजन पर आँच नहीं आने दी"?
"मुझे क्षमा कर दो माधव, युद्ध की विभीषिका ने मेरा हृदय व्यथित कर दिया था| एक साधारण मानव की सोच बहुत सीमित होती है, अधिक दूर तक नहीं जाती।"
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोरे जी।
खूबसूरत लघु कथा के लिए बधाई, तेज वीर सिंह जी
हार्दिक आभार आदरणीय नवीन मणि जी।
आ0 तेजवीर सिंह साहब बहुत सुंदर कथा पढ़ने को मिली अनंत बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।
हार्दिक आभार आदरणीय सुशील सरना जी।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी कृष्ण अर्जुन का सुंदर और संदेशात्मक प्रसंग। आत्मावलोकन से साक्षात्कार कराती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई।
हार्दिक आभार आदरणीय बबिता गुप्ता जी।
सद्मार्ग पर चलने का संदेश देती बेहतरीन लघु कथा,हार्दिक बधाई आदरणीय सरजी।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online