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मैं अभी भी मुस्कुराता हूँ “


        

राज की बात एक बताता हूँ।

मैं अभी भी मुस्कुराता हूँ

 

मुश्किलें घेरने से डरती हैं।

हँसते-हँसते उन्हें डराता हूँ।।

 

जब भी तन्हाइयों में होता हूँ।

इक नया गीत गुनगुनाता हूँ।।

 

मेरा हौसला ही मेरा संबल है।

रोज़ थोड़ा सा इसे बढ़ता हूँ।।

 

जीवन है खेल सारा शब्दों का।

           मायने सीखता सिखाता हूँ।।

 

आईना तारीफ़ रोज़ करता है।

ख़ुद पे हँसता हूँ इतराता हूँ।।

 

जब बरसते हैं आँख से बादल।

          मैं भी जी भर के तब नहाता हूँ।।

 

मुझसे ख़ुश हो के लिपट जाती है।

फूल जुड़े में जब सजाता हूँ।।

 

सुध नहीं रहती किसी भी शय की।

तेरी तस्वीर जब बनाता हूँ।।

 

देखे ना कोई भी मेरे गम को ।

इसलिय सबसे इन्हें छुपाता हूँ।।

 

प्यार की धुन निकालने के लिए।

साज़ कैसा भी हो बजाता हूँ।।

 

        -प्रदीप भट्ट-         

मौलिक एवं अप्रकाशित                                                       

 

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Comment by Samar kabeer on July 31, 2018 at 6:05pm

जनाब प्रदीप भट्ट जी आदाब,अच्छी कविता हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 30, 2018 at 5:58pm

धन्यवाद बंधुवर 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 29, 2018 at 2:31pm

अच्छी कविता है आदरणीय..कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ हैं..देखिएगा

कृपया ध्यान दे...

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