For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवगीत- यही सोचता रहा घड़ा

स्वर्ण-कलश हो गए लबालब,

क्यों हूँ अब तक रिक्त पड़ा.

जाने कब नंबर आयेगा,

यही सोचता रहा घड़ा.

 

नदिया सूखी, पोखर प्यासी,

तालाबों की वही कहानी.

झरने खूब बहे पर्वत से,

जाने किधर गया सब पानी.

 

गूगल से भी पूछा उसने,

मगर प्रश्न है वहीं खड़ा.

 

घूप्प अँधेरी रही तलहटी,

सूरज उगा नित्य शिखरों पर.

झुलस रहा धरती का आँचल,

सुनता एक न उसकी अम्बर.

 

मेघ सिन्धु पर बरसाने को,  

इंद्र देवता रहा अड़ा.

 

कहाँ कभी बरगद के नीचे,

कोई भी पौधा उग पाया.

कब देती हैं बड़ी मछलियाँ,

छोटी मछली को शरमाया.

 

आखिर में तो वही बचा, जो

अपनी दम पर हुआ बड़ा.

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

Views: 364

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 5, 2018 at 12:04pm

हृदय से आभार आदरणीय आपकी मनभावन प्रतिक्रिया का , मैंने तो अभी अभी लिखना शुरू किया है, अभी मार्गदर्शन देने की स्थिति में तो बिलकुल नहीं , हाँ नेट पर नवगीत के बारे में प्रचुर साहित्य उपलब्ध हैं.

आप तो स्वयं बहुत अच्छा लिखते हैं विधा कोई भी हो बात दिल से दिल तक जानी चाहिये बस ऐसा मानना है मेरा. स्वागत एवं सादर नमन 

Comment by Mohammed Arif on August 3, 2018 at 9:00pm

आदरणीय बसंत कुमार जी आदाब,

                       बहुत ही लाजवाब गीत । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

 नोट:- नवगीत लेखन का मैं भी इच्छुक हूँ । कृपया इसके विधान के बारे में विस्तृत मार्गदर्शन दें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service