आज १५ अगस्त... कई दिनों से प्रतीक्षा रही इस दिन की ... डा० रामदरश मिश्र जी का जन्म दिवस जो है । आज उनसे बात हुई तो उनकी आवाज़ में वही मिठास जो गत ५६ वर्ष से कानों में गूँजती रही है। उनका सदैव स्नेह से पूछना , “भारत कब आ रहे हैं ? ” ... सच, यह मुझको भारत आने के लिए और उतावला कर देता है .. और मन में यह भी आता है कि आऊँगा तो प्रिय सरस्वती भाभी जी के हाथ का बना आम का अचार भी खाऊँगा ... बहुत ही अच्छा अचार बनाती हैं वह ।
कैसे कह दूँ उनके स्नेह से मुझको स्नेह नहीं है, जब उनकी मीठी आग्रह करती आवाज़ दशकों से कानों में इतनी गूँजती रही है कि मानों वह अभी भी गूँज रही है .... १९६५ में तब के उनके दिल्ली के निवास-स्थान में किवाड़ बंद कर कमरे में बैठे उनका अपनी कविताएँ सुनाना, मुझ युवक को तब मेरी कवितायों पर सुझाव देना , और प्रिय भाभी जी का कमरे में हम दोनों के लिए चाए-पकोड़े ले आना ... कुछ भी तो नहीं भूला। भूल सकता भी कैसे, जब उनसे स्नेह इतना मिला हो ।
इन ९४ महत्वपूर्ण वर्षों में भाई डा० रामदरश मिश्र जी ने साहित्य को जो योगदान दिया उसके लिए हिन्दी साहित्य सदैव कृतज्ञ रहेगा । इस १५ अगस्त.. उनके जन्म के पावन दिवस पर उनकी कविताएँ बहुय याद आईं । मेरी आदत रही है, उनकी कविताएँ संग्रहित करने की... १९६२ से यह आदत अभी भी अच्छी लगी है ( जैसे किसी को "पीने" की आदत भली लगती है ) .. तो यह हैं उनकी लिखी बहुत ही पुरानी मेरी प्रिय कुछ पंक्तियाँ
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ज़िन्दगी का सिन्धु फेनिल दूर जीवन का सहारा
प्राण के बहते स्वरों को मिल न पाता है किनारा
चाहता हूँ ठहर क्षण भर किसी का प्यार ले लूँ
पर बह्ती जा रही तूफ़ान की गतिमान धारा
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रूप की इस धूप में जब उठ रही कुछ प्यास मन में
शान्त सिन्धु अथाह-सी तब कौन छा जाती नयन में
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आज हँस लें कल उठाएँगे चिता की धूल राही
जल रहे नीरव डगर पर स्वपन के अभियान सूने
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तेरे उपवन में कितने मधुमास सुरभी लाएँगे
किन्तु सदा के लिए जा रहा मैं पतझार संभाले
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और अब यह उनकी पुस्तक "हँसी ओंठ पर आँखे नम हैं" से उनकी लिखी मेरी प्रिय कविता से कुछ पंक्तियाँ...
कोई आया न, कोई खत, न तार ही आया
लौट आखिर को मेरा इन्तज़ार ही आया
जिसे भेजा था कहके उनको भेज देना तुम
थका-थका-सा लौट अपना प्यार ही आया
वे आएँगे, ये यकीन नहीं दिल को हुआ
नहीं आएँगे, ये न एतबार ही आया
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सच, भाई रामदरश जी की कविताएँ प्रसन्न करती हैं, और प्राय: उनके भाव इतने गहरे उतरते हैं कि कुछ उदासी भी छोड़ जाते है, और यह उदासी मुझको प्रिय है, क्यूँकि यह भाई की गहन-सोच-से-उपजी है ।
आज यह जन्म-दिन मुबारक हो, बहुत मुबारक हो, भाई रामदरश मिश्र जी को और उनके पाठकों को भी।
अब एक और जन्म-दिवस .. उनके ९५ वें वर्ष ... की पावन प्रतीक्षा है ।
,
--- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आपका हार्दिक आभार, आदरणीया नीलम जी
आदरणीय विजय निकोर जी, नमस्कार। रामदरश मिश्र जी को हमारी तरफ़ से भी जन्म दिन की हार्दिक बधाई तथा सुन्दर प्रस्तुति पर आपको भी हार्दिक बधाई ।
भाई समर जी, आपसे यह सराहना मिलना बहुत ही आनन्दमय है। मार्ग-दर्शन के लिए आभार। शीघ्र ठीक कर दूँगा।
प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,जनाब रामदरश मिश्र जी के जन्म दिवस पर उनके साथ गुज़ारे पल,याद करके उनको बधाई देने का अंदाज़ बहुत उम्दा लगा,और साथ ही उनकी कवित्ताएँ भी साझा कीं, हमारी तरफ़ से भी उन्हें जन्म दिन की हार्दिक बधाई,और इस शानदार प्रस्तुति पर आपको भी बहुत बहुत बधाई ।
//आज उनसे बात हुई तो उनकी आवाज़ में वही मिठास जो गत ५६ वर्ष से कानों में गूँजता रहा है।//
इन पंक्तियों में 'कानों में गूंजती रही है' कर लें,क्योंकि 'आवाज़' और 'मिठास' दोनों शब्द स्त्रीलिंग हैं ।
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