खुदापरस्ती ... (अतुकांत)
मुअम्मे कुछ ऐसे जो हम जीते रहे
पर ज़िन्दगी भर हमसे बयां न हुए
कैसी है तिलिस्मी मुसर्रत की तलाश
मशगूल रखती रही है शब-ओ-रोज़
हसरतें भी देती हैं छलावा मुसल्सल
कहीं दूर टिमटिमा रहे चिराग़ का
मुसल्लम: मुसर्रत आख़िर है ही क्या
दे सकता है हमें सही मिसाल कोई
"ना पाकी" में कैसे जिए पाक कोई
“ताजपोशी” का तू इन्तज़ार न कर
खुदापरस्त रह, ताख़ीर और न कर
ज़िन्दगी है तौफ़ीक इसे जी ले ज़रा
सही जीने पर अब सवालात न कर
जवाब मुयस्सर न सही, है मुख़्तसर
“सही” जीने का इस दुनिया में कहीं
मिला है कोई मुकम्मिल कलाम नहीं
--------
-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
..................................................
खुदापरस्ती= ईश्वर-भक्ति
मुअम्मे = रहस्य, पहेलियाँ
मशग़ूल = व्यस्त
शब-ओ-रोज़ = रात दिन
तिलिस्मी = मायानिर्मित
मुसर्रत = खुशी
मुसल्सल = लगातार, निरंतर
मुसल्लम: = संपूर्ण
ना पाकी = अपवित्रता
पाक = पवित्र, साफ़
हयात = ज़िन्दगी
ताख़ीर = विलंब
तौफ़ीक = ईश्वर की कृपा
मुयस्सर = आसानी से मिलनेवाला
मुख़्तसर = संक्षिप्त, छोटा
मुकम्मिल = पूर्ति करने वाला
कलाम = वाणी
Comment
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुरेन्द्र जी
आद0 विजय निकोर जी सादर अभिवादन। बढ़िया कविता लिखी आपने,, बधाई स्वीकार कीजिये
सराहना के लिए और मार्गदर्शन के लिए मैं आपका आभारी हूँ, मेरे भाई समर जी। सुधार कर दिए हैं। आपके अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना है।
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया बबीता जी
जीवन की यथार्थता को कैसे स्वीकारे ,संदेश देती बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।
इतनी अच्छी सराहना मिलना मेरे लिए पारितोषिक है, शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी। आपका हार्दिक आभार।
एक साथ कई यथार्थ समेटे जीवन की कड़वी और आदर्श बातें कहकर बहुत से संदेश वाहक सृजन हेतु व अंत में कठिन शब्दार्थ देने हेतु सादर हार्दिक आभार और बधाइयाँ मुहतरम जनाब विजय निकोरे साहिब।
प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,उर्दू शब्दों के इस्तेमाल से बहुत ही उम्दा अतुकान्त कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
कुछ बातें आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा ।
//मशगूल रखती रही है हमें शबोरोज़//
इस पंक्ति में 'शबोरोज़'का अर्थ आपने 'हर रात' लिखा/लिया है,जबकि "शब-ओ-रोज़" का अर्थ होता है 'रात-दिन' ।
//यार नापाक में कैसे जिए पाक कोई//
इस पंक्ति में 'नापाक' की जगह "ना पाकी" लिखना उचित होगा "ना पाकी"अर्थात 'अपवित्रता की हालत' ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online