आशंका के गहरे-गहरे तल में
आयु के हज़ारों लाखों पलों के दबे ढेर में
नए कुछ पुराने दर्दों की कानों में आहट
भार वह भीतर का जो खलता था तुमको
मुझको भी
एक दूसरे को दुखी न देखने की
दर्द और न देने की मूक अभिलाषा
रोकती रही थी तुमको... कुछ कहने से
मुझको भी
पर परस्पर दर्द और न देने की इस चाह ने
बना दी है अब बीच हमारे कोई खाई गहरी
काल ने मानो सुनसान रात की गर्दन दबोच
गले पर मानो लटका दी है कोई गठरी भारी
इस सूने में बढ़ जाता है जब दर्द ज्वालामुखी-सा
सोचता हूँ अच्छा ही होता जो कोई संबंध न होता
अंधियारी रातों का उदास खड़े पेड़ों से
या... तुम्हारा मुझसे
यह चुप्पी की खाई बीच हमारे
शब्द असमर्थ हैं, लांघ नहीं पा रहे
दर्द जो तुम मुझको देने से डरती रही
घने मेघों-से वही हैं अब बढ़ते आ रहे
भार वह भीतर आशंका का बढ़ता है उबलता है
कभी सोच कभी अफ़सोस कभी फ़िक्र तुम्हारी
मैं क्या करूँ क्या न करूँ कि करने न करने से
पड़ जाए झोल कहीं हिमीभूत भविष्य में तुम्हारे
मेरी "प्यार", अच्छा है कि अब हम न ही मिलें
----------
-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
सराहना के लिएआपका हार्दिक आभार, आदरणीय तेज वीर सिंह जी
हार्दिक बधाई आदरणीय विजय निकोरे जी।बेहतरीन रचना।
यह चुप्पी की खाई बीच हमारे
शब्द असमर्थ हैं, लांघ नहीं पा रहे
दर्द जो तुम मुझको देने से डरती रही
घने मेघों-से वही हैं अब बढ़ते आ रहे
काव्यात्मक शैली माँ अपने अंतर्मन के भावों को उदगार करती रचना,हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय विजय सरजी।
सराहना के लिएआपका हार्दिक आभार, आदरणीय नरेन्द्रसिहं जी।
सराहना के लिए और मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुशील जी।
भाई समर जी, रचना को आपने इतना मान दिया, हृदयतल से आभारी हूँ आपका। कृपया मनोबल बढ़ाए रखें।
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी।
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुरेन्द्र जी
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, मेरे आदरणीय शेख़ उस्मानी जी।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online