बेहद तेजी से प्रोफेशनल तरक्की
के रास्ते पर हो दोस्त,
बुन ली है तुमने अपने
आस पास एक ऐसी दुनिया,
जिसमें ना प्रवेश कर सकते हैं हम
और ना ही तुम आ सकते हो हम तक !
नहीं बची है दूसरों के लिए करुणा,
प्रेम, स्नेह और आत्मीयता की कोई जगह,
तुम्हारी इस दुनिया में !
हंसना, मुस्कुराना तो कभी का
हो चुका था बंद,जब भी मिले,मिले तुम
लिए चेहरे पर प्लास्टिक सी मुस्कान,
भीतर ही भीतर मान लिया तुमने,
स्वयं को सर्वश्रेष्ठ,
बना ली अपने आस पास एक ऐसी दीवार,
जिसमें दरवाजा तो दूर कोई ‘खिड़की’ तक न थी !
घर के बाहर इकट्ठे होते अखबारों,
और दूध के पैकेट ने बताया कि ;
‘अब तुम नहीं हो इस दुनिया में’ !
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
शुक्रिया आदरणीय Samar kabeer जी !
जनाब नवल किशोर सोनी जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
शुक्रिया आदरणीय santosh khirwadkar जी !
वाह्ह्ह क्या शाश्वत अभिव्यक्ति है ......प्लास्टिक की मुस्कान..बहुत ख़ूब!!
जनाब मोहम्मद आरिफ जी हौसला अफजाई के लिए आपका शुक्रिया !
आदरणीय नवलकिशोर जी आदाब,
भावना की तीव्र अभिव्यक्ति । तरक़्की के इस दौर में हम अपनों से बहुत दूर जा रहे हैं । जो अपने हैं उन्हें भी तरजीह नहीं देते हैं । संवेदनहीनता का सैलाब सबको डुबो रहा है । हार्दिक बधाई ।
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