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प्रतीक्षारत विरह

"प्रिये अपनी दाईं तरफ थोड़ा सा मुड़कर देखो
कोई है जो हौले से तुम्हारे सीने पर हाथ रखना चाहती है ।
तुम्हे नील गगन और खुद को धरा बनाना चाहती है ।
तुम्हारे आलिंगन में अनगिनत सितारे जगमगाना चाहती है ।
और तुम्हें बस तुमसे चुराना चाहती है.....
तुम्हारे आलिंगन में आकर तुम्हे सब कुछ भुलाना चाहती है ।
तुम्हारी आनंदातिरेक सिसकियों में बस अपना नाम सुनना चाहती है ।
तुम्हें समर्पित होकर तुम्हें तुमसे चुराना चाहती है ।
एक बार तो मुड़ कर देखो प्रिये....
इस प्रतीक्षारत विरह में बस तुम्हें अपना बनाना चाहती हूँ ।"

"मोनिका जैन"डॉली"
मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by बृजेश नीरज on September 1, 2018 at 8:10pm

छन्दमुक्त कविता गद्यात्मक होती है लेकिन आदरणीया कविता के वाक्य-विन्यास और गद्य के वाक्य-विन्यास में अन्तर होता है. शिल्प पर काम करना जरूरी है. छन्द विशेषतः दोहों पर काम करें जिससे आपकी कविता में प्रवाह आ सके.

Comment by Samar kabeer on August 28, 2018 at 12:24pm

मुहतरमा मोनिका जैन "डॉली" जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

सभी पंक्तियों में 'चाहती है' और अंत में "चाहती हूँ"?

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