वज़्न 221 1221 1221 122
दिल लूट के’ कह दे कि खतावार नहीं था
वो इश्क में इतना भी समझदार नहीं था
आँखों से’ उड़ी नींद बताती है’ सभी कुछ
कैसे वो’ कहेगा कि उसे प्यार नहीं था
क्यों फेंक दिया उसने कबाड़े में मुझे यार
पुस्तक था’ मुहब्बत की’ मैं’ अख़बार नहीं था
इस देश में’ इन्साफ की’ दुनिया है निराली
पकड़ा वो’ गया है जो’ गुनहगार नहीं था
जब तक थी’ गरम जेब तो’ नजदीक सभी थे
बदला जो’ समय कोई’ मददगार नहीं था
परदेश का’ रुख उसने’ किया यूँ ही’ नहीं है
कोई भी’ यहाँ उसका’ खरीदार नहीं था
लग जाता’ गले से तो’ भुला देता’ गिले सब
मुझको भी’ मुहब्बत से’ तो’ इंकार नहीं था
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीया babitagupta जी शुभ प्रभातम, हौसला अफजाई ले लिए आपका दिल से शुक्रिया
बदला जो समय कोइ मददगार नहीं था,बेहरीन पंक्ति।हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय बसंत सरजी।
आदरणीय विजय निकोरे जी शुभ प्रभात , आपकी हौसला अफजाई का दिल से शुक्रिया
गज़ल अच्छी लगी। बधाई, मित्र बसंत जी
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी शुभ प्रभात, दिल से शुक्रिया आपका
आदरणीय अजय तिवारी जी शुभ प्रभातम, आपकी मनभावन प्रतिक्रिया का ह्रदय से आभार
आदरणीय अजय कुमार शर्मा जी शुभ प्रभात, दिल से शुक्रिया आपका
परम आदरणीय समर कबीर जी शुभ प्रभात , आपकी हौसलाफजाई का तहे दिल से शुक्रिया
आदरणीय बसंत कुमार जी प्रणाम , बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को | सादर
आदरणीय बसंत जी, अच्छे अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.
'इस देश में’ इन्साफ की’ दुनिया है निराली
पकड़ा वो’ गया है जो’ गुनहगार नहीं था'
ये शेर समकालीन घटनाओं पर एक अच्छी टिप्पणी है.
सादर
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