पतझड़ों के बीच भी यदि ऋतु सुहानी है तो है
घर हमारे महमहाती रात रानी है तो है
हो रहीं मशहूर परियों की कथाएँ आजकल
और उनमें एक अपनी भी कहानी है तो है
बेवफा वो हो गया पर हम न भूले हैं उसे
यदि हमारे पास उसकी कुछ निशानी है तो है
रैलियाँ हैं, थैलियाँ हैं, आदमी बेवश यहाँ
दर्द की यमुना किनारे राजधानी है तो है
मुश्किलें जो थीं हमारीं दूर सारी हो गईं
आँख में यदि आपके थोड़ा सा पानी है तो है
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय लक्ष्म धामी जी दिल से शुक्रिया आपका, सादर नमन आपको
आदरणीय समर कबीर जी शुभ प्रभात, आपकी हौसला अफजाई का दिल से शुक्रिया, आपकी इस्लाह का हमेशा इंतजार रहता है मुझे, सादर नमन आपको
आ. भाई बसंत जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई स्वीकारें ।
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
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