For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आप आये अब हमें दिल से लगाने के लिए

जब न आँखों में बचे आँसू बहाने के लिए

 

छाँव जब से कम हुई पीपल अकेला हो गया  

अब न जाता पास कोई सिर छुपाने के लिए

 

तितलियाँ उड़ती रहीं करते रहे गुंजन भ्रमर

पुष्प में मकरंद था जब तक लुभाने के लिए

 

हम नदी से बह रहे हैं खुद बनाकर रास्ता

सिन्धु से कब चाह है आये बुलाने के लिए

 

दर्द में डूबे हुए कब तक गुजारें जिन्दगी

कुछ गमों को छोड़ना बेहतर ज़माने के लिए

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

Views: 687

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 18, 2018 at 10:28am

आदरणीय  बृजेश कुमार 'ब्रज' जी शुभ प्रभात, आपका दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 18, 2018 at 10:28am

आदरणीय रामबली गुप्ता जी शुभ प्रभातम, आपकी हौसलाफजाई का दिल से शुक्रिया 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 18, 2018 at 8:49am

वाह आदरणीय शर्मा जी...बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही...

Comment by रामबली गुप्ता on September 17, 2018 at 1:16pm

वाह भाई बसंत कुमार जी बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही आपने हार्दिक बधाई स्वीकार करें।  सभी शैर बढियाँ हुए हैं लेकिन पहला और दूसरा शैर दोनों मुझे बहुत पसंद आये। तीसरे शेर में आद० समर भाई साहब का सुझाव बेहतर है। सादर

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 15, 2018 at 9:07pm

आदरणीया रक्षिता सिंह जी सादर नमस्कार , आपकी मनभावन प्रतिक्रिया का दिल से शुक्रिया 

Comment by रक्षिता सिंह on September 15, 2018 at 1:17pm

आदरणीय बसंत जी बहुत ही खूबसूरत गज़ल। बहुत बहुत बधाई

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 14, 2018 at 1:13pm

आदरणीय समर कबीर जी सादर नमस्कार, आपकी तरमीम से हमेशा ही कुछ न कुछ सीखने को मिलता है, बहुत बहुत शुक्रिया , यूँ ही स्नेह बनाये रखें 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 14, 2018 at 1:12pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी सादर नमस्कार, आपका दिल से शुक्रिया हौसला अफजाई के लिए 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 14, 2018 at 1:11pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  सादर नमस्कार, आपकी मनभावन प्रतिक्रिया हेतु सादर आभार 

Comment by Samar kabeer on September 14, 2018 at 11:56am

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

हम नदी से बह रहे हैं खुद बनाकर रास्ता

सिन्धु से कब चाह है आये बुलाने के लिए'

इस शैर के ऊला मिसरे में 'से' की जगह "में" करना उचित होगा,और सानी मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है 'चाह है' ,अगर मिसरा यूँ करलें तो ऐब निक्ल जायेगा:-

'चाह क़ब है सिन्धु से आये बुलाने के लिये'

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service