सोचिये मत यहाँ ख़ता क्या है ।
है इशारा तो पूछना क्या है ।।
अब मुक़द्दर पे छोड़ दे सब कुछ ।
सामने और रास्ता क्या है ।।
वो किसी और का हो जाएगा ।
बारहा उसको देखता क्या है ।।
गर है जाने की ज़िद तो जा तू भी ।
अब तेरा हमसे वास्ता क्या है ।।
इतना मासूम मत कहो उसको।
इल्म कुछ तो है आसना क्या है ।।
उसकी फ़ितरत से ख़ूब वाकिब हूँ ।
ख़त में उसने हमें लिखा क्या है ।।
जब दवा ही नहीं है पास तेरे ।
दर्दो ग़म मेरा पूछता क्या है ।।
आजकल बेख़ुदी में रहते हो ।
इश्क़ फिर से कहीं हुआ क्या है ।।
आग जब आशिकी लगा बैठी ।
क्या बता दूँ यहां बचा क्या है ।।
रोज़ मजबूरियों में मरता हूँ ।
मौत का और फ़लसफ़ा क्या है ।।
यूँ बिखरती हैं ख़्वाहिशें सारी ।
जिंदगी एक हादसा क्या है ।।
तेरी बस्ती में रिन्द हैं दाखिल ।
तिश्नगी का तुझे पता क्या है ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ0 श्याम नारायण वर्मा जी सप्रेम नमन के साथ हार्दिक आभार ।
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी प्रणाम , बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को | सादर
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