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आगे की सोच (लघुकथा)

"अच्छा, तो आपको केवल 'केमिस्ट्री' में इंट्रेस्ट है, 'कैमरों' की 'मिस्ट्री' में नहीं!"
"जी, मैं उनकी 'हिस्ट्री' अच्छी तरह पढ़ और सुन चुकी हूं! मुझे ग्लैमर की वैसी दुनिया पसंद नहीं!"
"अच्छा, तो यह बताओ कि तुम्हारी अपनी 'केमिस्ट्री' किस तरह के लोगों से मेल खा पाती है?"
"सर, आप ये कैसे सवाल कर रहे हैं! ये इंटरव्यू है या इनर-विउ?"
"तो आप अपनी ख़ूबसूरती पर मेरे रिव्यूज़ समझ ही गईं! मतलब हमारे बीच 'केमिस्ट्री' जमने की गुंजाइश है!"
"जी नहीं, समझ तो मैं गई हूं आपकी मशहूर करिअर काउंसलिंग की 'मिस्ट्री' और आगे की सोच! सॉरी, अब मुझे यहाँ से चले जाना चाहिये!"
"बिलकुल जाइये; लेकिन पहले ये बता जाइये कि इस वीडियो वाले लड़के के साथ आपकी 'केमिस्ट्री' की हिस्ट्री इतनी चर्चित क्यों हुई?"
" ... क्ककौन सा वीडियो?"
"वही नया पुलिस अधिकारी, जिसके साथ आप कहीं भागी थीं... !"
"भागी नहीं थी! वे तो मेरे बड़े भाई के भाग्य-विधाता बने हमारे बुरे दिनों में! उनकी परीक्षा और नौकरी के सिलसिले में उनके साथ जाना पड़ा था अचानक; घर में बताये बिना! दरअसल उन्होंने ही भाई की नौकरी पुलिस में लगवाई थी... लेकिन यह सब आपके पास कैसे?"
"यह हमारे कैमरों और कैमरामेन की मिस्ट्री है! आपकी अग्नि-परीक्षाओं की हिस्ट्री, मिस! सी, एडल्ट्री सी है न!"
"ओह! तो यह सब भी कोई मिली भगत है!"
"नहीं, यही जगत है! जगत की मिस्ट्री और हिस्ट्री और आप जैसी सुंदरियों की केमिस्ट्री! हम तो सेतु हैं.. सेतु! सबके हेतु!"
"... लेकिन अब कोई हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता! क़ानून है हमारे हेतु!" यह कहकर वह कुर्सी छोड़कर फुर्ती से भागी न्यायालय की शरण संबंधित काउंसलिंग हेतु।


(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Neelam Upadhyaya on October 4, 2018 at 4:33pm

आदरणीय शेख उस्मानी जी,  अच्छी लघुकथा हुई है।    बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Samar kabeer on October 2, 2018 at 12:25pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 1, 2018 at 7:13pm

आदाब। कृपया सम्मानित पाठकगण 'पुलिस अधिकारी..'वाले संवाद के एक सुधार पर ग़ौर फ़रमाइयेगा :

//उनकी परीक्षा और नौकरी के सिलसिले में उनके साथ जाना पड़ा था अचानक; घर में बताये बिना!// .. इसे इस स्पष्ट रूप में लीजिएगा : 

// भाईसाहब की 'परीक्षा आवेदन और नौकरी' के सिलसिले में उन साहब के साथ अचानक ही जाना पड़ा था अचानक; घर में बताये बिना!//

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