"दुनिया भर में हमारा नाम हो रहा है! लोग हमारी बहुआयामी तरक़्क़ी की बात कर हमसे अपनी तरक़्क़ी साझा करने के लिये लालायित हैं! हम सब कुछ बदल कर एक नये विकसित देश का निर्माण करने जा रहे हैं!"
"ये कैसा देश है रे, जो इतने आत्मविश्वास से यूं गर्वोक्तियां कर रहा है!" एक और नन्हें से महत्वाकांक्षी विकासशील देश ने एक बड़े विकसित देश से कहा।
"आजकल मेरे साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रहा है! ज़रा देखो तो, कितना डिवेलप हो रहा है मेरे ही कर्ज़ से, मेरी ही तकनीकों से और मेरी ही व्यावसायिक-रणनीति से! इसी की मदद चाहिए है हमें उस क्षेत्र के हमारे विशेष दुश्मन-आतंकियों को नेस्तनाबूद करने के लिए और ख़ुद इसको हमारी संस्कृति व धर्म की मुख्य धारा में लाने के लिए, बस!"
"नारियल है... 'ना-रिअल' ! ऊपर से देखने में नकलची 'बंदर' और उसकी 'थूथन' की तरह लगता है! 'व्यापार' के 'नारियल-पेड़' तुम जैसे बड़े देशों ने दुनिया के ऐसे मुल्कों में लगाये और 'असली ताज़े' हरे-भरे 'नारियलों' का सेवन भी तुम ही कर रहे हो!" उस विकसित देश की बात पर उस छोटे विकासशील देश ने कटाक्ष किया - "सुना है कि अंदर ही अंदर यह ज़हरीला सा हो रहा है! इसके 'गूदे (गरी)' और 'पानी' में वैसी गुणवत्ता नहीं रही और सुख-शांति और उदारता रूपी इसके सफ़ेद 'गूदे' का 'रंग' 'पीला' सा होकर किसी और 'विशेष रंग' में ढलता जा रहा है अपनी असली तासीर खोकर!"
"उससे हमें क्या? यह उसका अपना अंदरूनी मामला है! हमें तो हमारे हाथों के इशारे पर चलने वाली कठपुतलियों की ज़रूरत है ऐसे ज़रूरतमंद जोशीले क्षेत्रों में!" विकसित देश ने अपने महंगे 'शूट' की महंगी 'टाई' खींचते हुए उस विकासशील देश के कंधे पर हाथ डालते हुए कहा - "तुम मेरे नये दोस्त हो! नन्हे भले हो, लेकिन इससे बेहतर हो! मेरी तरह तुम भी इस पर कड़ी नज़र रखो और इसके संग व्यवहार और व्यापार बढ़ाओ! जैसा हम कहें, वैसा करते जाओ, बस! मेरे साथ-साथ तुम्हारे भी वारे-न्यारे हो जायेंगे इसके नेताओं और उद्योगपतियों के मार्फ़त!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर अपना क़ीमती वक़्त देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदाब। कृपया अंतिम संवाद की तीसरी पंक्ति में 'शूट' के स्थान पर सही शब्द 'सूट' पढ़िएगा। शुक्रिया।
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