ये जो है लड़की
उसकी जो आँखे
आँखों में सपना
सपने में घर
उसका अपना घर
जिसके बाहर
वो लिख सके
यह मेरा घर है दुकान नहीं है
यह लड़की चेतन प्राणी है
कोई बिकाऊ सामान नहीं है
..........................................................................
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
जनाब उस्मानी साहब
गलती बताने के लिए दिल से आभारी हूँ .
(अभी ठीक करती हूँ )
शुक्रिया
अमिता
जनाब कबीर साहब ,जनाब शेख उस्मानी ,डा सिंह ,नीलम जी,तथा मुसाफिर जी
आप सब की सराहना और स्नेह के प्रति आभारी हूँ .
आपने समय दिया और बहुमूल्य सुझाव दिए ,इसके लिए शुक्रिया
साभार
अमिता
मुहतरमा अमिता तिवारी जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीया अमिता तिवारी जी, अच्छी रचना हुयी है, बधाई।
आ. अमिता जी, प्रयास के लिए बधाई । शेष गुणी जनों की सलाह का संज्ञान अवश्य लें ।
बहुत बढ़िया सारगर्भित रचना पर और समय देने पर सशक्त कन्या के सभी पक्ष लेकर बेहतरीन अतुकान्त या छंदयुक्त रचना कही जा सकती है। हार्दिक बधाई आदरणीया अमिता तिवारी साहिबा। (दूकान =दुकान)।
आदरणीया अमिता जी कम से कम शब्दों मेंअपने हकीकत बया कर दी बधाई हो
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