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नज़्म - कहाँ जाऊँ के तेरी याद का

कहाँ जाऊँ के तेरी याद का झोंका नहीं आये,
कि तेरे साथ का गुज़रा कोई लम्हा न तड़पाये,

कभी कपड़ों में मिल जाते हैं तेरे रंग के जादू,
मुझे महका के जाती हैं तेरे ही ब्राण्ड की ख़ुश्बू ,

मेरे हाथों की मेहंदी में तेरा ही अक़्स उभरे है,
मेरी साँसों में भी जानां तेरी ही साँस महके है,

पसंदीदा तुम्हारा जब कोई खाना बनाती हूँ,
तुम्हारे नाम की थाली अलग से मैं लगाती हूँ,

मिला कर दर्द में आँसू तेरा चेहरा बनाती हूँ,
मैं अक्सर चाँद तारों को तेरे क़िस्से सुनाती हूँ,

खुदाया अबके जब लिखा यही तहरीर लिख देना,
उसे तुम मेरी हाथों में सजी तस्वीर लिख देना

!!अनुश्री!!


मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by narendrasinh chauhan on October 18, 2018 at 7:48pm

लाजवाब

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 18, 2018 at 12:06pm

वाह सुन्दर भावभरी रचना..बधाई

Comment by Samar kabeer on October 17, 2018 at 5:49pm

मुहतरमा अनीता मौर्य जी आदाब,नज़्म का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

खुदाया अबके जब लिखा यही तहरीर लिख देना,
उसे तुम मेरी हाथों में सजी तस्वीर लिख देना'

पहली पंक्ति लय में नहीं ,दूसरी पंक्ति में 'तुम' की जगह "तू" होना चाहिए:-

'ख़ुदाया अब के जब लिखना,यही तहरीर लिख देना

उसे तू मेरे हाथों में सजी तस्वीर लिख देना'

Comment by Munavvar Ali 'taj' on October 17, 2018 at 3:04pm

मुहतरमा अनीता जी  आदाब, आपकी  रचना अच्छी लगी,बधाई स्वीकार करें ,

कृपया ध्यान दे...

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