For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दम रखेगा जो परों में- एक गजल

मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२२ 

आदमी गुम हो गया है आज ईंटों पत्थरों में

है कहाँ परिवार वो जो पल्लवित था छप्परों में

 

हँसते-हँसते जान दे दी दौर वो कुछ और ही था  

ढूँढना इंसानियत भी अब कठिन है खद्दरों में

 

आपने हमको सुनाया गीत के मुखड़े में’ दम है     

इल्तजा है जोश जारी आप रखिये अंतरों में

 

आम की सारी जड़ें तो खा गई चुपचाप दीमक

और जनता देश की उलझी रही बस बंदरों में

 

आगमन घर में अतिथि का आज कल होता कहाँ है 

कुर्सियाँ खाली मिलेंगी आपको अक्सर घरों में

 

यदि गरीबी में किसी ने साथ छोड़ा, क्या नया है

भाव कोई भी न देता रस न हो यदि संतरों में

 

डोरियों पर बैठकर तो छू न पाओगो गगन को

आसमाँ गर चूमना हो दम रखो अपने परों में

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

Views: 936

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on October 28, 2018 at 8:10pm

आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी सादर नमस्कार, आपकी इस्लाह का दिल   

से शुक्रिया, आवश्यक सुधार कर पुनः प्रस्तुत करता हूँ, इसी तरह स्नेह बनाए रखें सादर 

Comment by Samar kabeer on October 28, 2018 at 2:07pm

मैंने इसलिये नहीं कहा कि जनाब लक्ष्मण धामी जी इसकी तरफ़ इशारा कर चुके थे,और जनाब बसंत जी ने इसे संज्ञान में ले लिया था ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 28, 2018 at 8:25am

आ. बसंत जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई   है ..
हँसते-हँसते जान दे दी दौर वो कुछ और था  ... अंतिम दीर्घ मात्रा कम है 
आगमन घर में अतिथि का आज कल होता कहाँ  ... अतिथि १११ है इसे १२ पर लेना ठीक न होगा शायद.. अंतिम दीर्घ मात्रा भी कम है..
गौर कीजियेगा 
समर सर और अजय    सर ने कैसे ध्यान नहीं दिलाया इस तरफ?
सादर 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on October 27, 2018 at 9:31pm

आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी सादर नमस्कार आपको, आपकी हौसलाअफजाई का दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on October 27, 2018 at 9:30pm

आदरणीय समर कबीर साहब, सादर नमस्कार, आपका आशीर्वाद मिला तो सार्थक हुई गजल, दिल से शुक्रिया आपका 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 27, 2018 at 8:05pm

वाह आदरणीय शर्मा जी खूबसूरत ग़ज़ल कही है..

Comment by Samar kabeer on October 27, 2018 at 4:18pm

जनाब बसंत कुमार शर्मा  जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on October 27, 2018 at 12:24pm

आदरणीय  Mohammed Arif जी सादर नमस्कार 

आपकी हौसला अफजाई का दिल से शुक्रिया, यही मेरा संबल है , सादर नमन आपको 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on October 27, 2018 at 12:14pm

आदरणीय अजय तिवारी जी सादर नमस्कार 

आपकी हौसला अफजाई को सादर नमन 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on October 27, 2018 at 12:13pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर नमस्कार 

आपकी बारीक नजर पर नतमस्तक हूँ , सुधार कर लेता हूँ 

इसी तरह हौसला अफजाई करते रहिये. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
yesterday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
Friday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
Thursday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेद्र इन्सान जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई।  मतला प्रभावी हुआ है. अलबत्ता,…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service