मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२२
आदमी गुम हो गया है आज ईंटों पत्थरों में
है कहाँ परिवार वो जो पल्लवित था छप्परों में
हँसते-हँसते जान दे दी दौर वो कुछ और ही था
ढूँढना इंसानियत भी अब कठिन है खद्दरों में
आपने हमको सुनाया गीत के मुखड़े में’ दम है
इल्तजा है जोश जारी आप रखिये अंतरों में
आम की सारी जड़ें तो खा गई चुपचाप दीमक
और जनता देश की उलझी रही बस बंदरों में
आगमन घर में अतिथि का आज कल होता कहाँ है
कुर्सियाँ खाली मिलेंगी आपको अक्सर घरों में
यदि गरीबी में किसी ने साथ छोड़ा, क्या नया है
भाव कोई भी न देता रस न हो यदि संतरों में
डोरियों पर बैठकर तो छू न पाओगो गगन को
आसमाँ गर चूमना हो दम रखो अपने परों में
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी सादर नमस्कार, आपकी इस्लाह का दिल
से शुक्रिया, आवश्यक सुधार कर पुनः प्रस्तुत करता हूँ, इसी तरह स्नेह बनाए रखें सादर
मैंने इसलिये नहीं कहा कि जनाब लक्ष्मण धामी जी इसकी तरफ़ इशारा कर चुके थे,और जनाब बसंत जी ने इसे संज्ञान में ले लिया था ।
आ. बसंत जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई है ..
हँसते-हँसते जान दे दी दौर वो कुछ और था ... अंतिम दीर्घ मात्रा कम है
आगमन घर में अतिथि का आज कल होता कहाँ ... अतिथि १११ है इसे १२ पर लेना ठीक न होगा शायद.. अंतिम दीर्घ मात्रा भी कम है..
गौर कीजियेगा
समर सर और अजय सर ने कैसे ध्यान नहीं दिलाया इस तरफ?
सादर
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी सादर नमस्कार आपको, आपकी हौसलाअफजाई का दिल से शुक्रिया
आदरणीय समर कबीर साहब, सादर नमस्कार, आपका आशीर्वाद मिला तो सार्थक हुई गजल, दिल से शुक्रिया आपका
वाह आदरणीय शर्मा जी खूबसूरत ग़ज़ल कही है..
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय Mohammed Arif जी सादर नमस्कार
आपकी हौसला अफजाई का दिल से शुक्रिया, यही मेरा संबल है , सादर नमन आपको
आदरणीय अजय तिवारी जी सादर नमस्कार
आपकी हौसला अफजाई को सादर नमन
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर नमस्कार
आपकी बारीक नजर पर नतमस्तक हूँ , सुधार कर लेता हूँ
इसी तरह हौसला अफजाई करते रहिये. सादर
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