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हमारी रात उजालों से ख़ाली आई है
बड़ी उदास ये अबके दिवाली आई है //१
चमन उदास है कुछ यूँ ग़ुबारे हिज्राँ में
कली भी शाख़ पे ख़ुशबू से ख़ाली आई है //२
फ़ज़ा ख़मोश है घर की, अमा है सीने में
हमारा सोग मनाने रुदाली आई है //३
मवेशी खा गए या फिर है मारा पालों ने
कभी कभार ही फ़सलों पे बाली आई है //४
बता ऐ ताइरे खिरमन, तू घर बसायेगा?
हमारे हिस्से में इक ख़ुश्क डाली आई है //५
जवाब कुछ नहीं हमको मिला तेरे दर से
नज़र जो लौट के आई सवाली आई है //६
हुआ बहीज मैं कुछ यूँ कि तुझको छूने की
मेरे दिमाग़ में फ़ित्ना ख़याली आई है //७
बुरा न मानूँ मैं शीरीं ज़बान का तेरी
मेरे सवाल के बदले जो ग़ाली आई है //८
नहीं है राज़ कोई नौकरी तो हैं बैठे
पुराना काम है जिसपे बहाली आई है //9
~राज़ नवादवी
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
अमा- अन्धता, गहरा बादल; रुदाली- दूसरों के मातम में पैसे लेकर रुदन करने वाली औरतें; ताइरे खिरमन- खलिहानों पे पलने वाला पक्षी; बहीज-आनंदित, हर्षित; फ़ितना ख्याली- गड़बड़ करने का ख़्याल; बहाली-पुनर्नियुक्ति
Comment
आदरणीय राज़ साहब, खूबसूरत अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.
मनाएं जश्न भी क्या हम अँधेरी रातों का
नहीं है पास में बाती, दिया भी ख़ाली है??? रदीफ़ और काफ़िया?
एक शेर जोड़ा किया है:
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आदरणीय तेजवीर सिंह साहब, आदाब. ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया. सादर.
हार्दिक बधाई आदरणीय राज़ नवादवी जी।बेहतरीन गज़ल।
आदरणीया नीलम उपाध्याय जी, आदाब. ग़ज़ल में शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया. सादर
आदरणीय दीवाली पर भी उजालों से खाली रात का दर्द छलकाती अच्छी पेशकश। बधाई स्वीकार करें।
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