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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ८२

२१२२ २१२२ २१२२ २१२

जह्र बनके काम करती है दवाई देख ली
अच्छे अच्छों की भी हमने रहनुमाई देख ली //१

पीठ पीछे मर्तबा ए बे अदाई देख ली
तेरी भी मेहमाँ नवाज़ी हमने, भाई देख ली //२

आरज़ी थी दो दिनों की जाँ फ़िज़ाई देख ली
इश्क़ की ताबे जुनूने इब्तिदाई देख ली //३

दिन को सोना और शब की रत-जगाई देख ली
मय की जो भी कैफ़ियत थी इंतिहाई देख ली //४

गर भरा हो जाम पूरा तो छलक ही जाता है
लब ने जोशे कैफ़ की बे-एतिनाई देख ली //५

ता हलक लबरेज़ ख़ुम को चैन कब मैकश बिना
रायगाँ साक़ी से कर दीदा दराई देख ली //६

तू अलग कुछ भी नहीं मेरी अना की साख्त से
मैंने करके तेरी भी उक़दा कुशाई देख ली //७

है फुगाँ भी बेख़बर ख़ुद बाईसे आज़ार से
करके उसने रोज़ो शब नाला-सराई देख ली //८

देखना क्या उस नज़र का और बाक़ी रह गया
जिसने रेज़े रेज़े में क़ुदरत नुमाई देख ली //९

राज़ हमने हिन्द में जम्हूरियत के नाम पे
ख़ानदानी हिज्ब की भी पेशवाई देख ली //१०

~ राज़ नवादवी

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

मर्तबा- श्रेणी, दर्ज़ा
बे अदाई- अशिष्टाचार
आरज़ी- अस्थाई
जाँ फ़िज़ाई- ताज़ा या पुनर्जीवित करना
ताबे जुनूने इब्तिदाई- प्रारंभिक जुनून की चमक
बे-एतिनाई- लापरवाही, ध्यान न देना
ख़ुम- शराब रखने की सुराही
रायगाँ- व्यर्थ
दीदा दराई- आँख से आँख मिलाकर देखना
अना- स्वयं, ईगो
साख्त- बनावट
उकदा कुशाई- गाँठ खोलना
फ़ुगाँ- आर्तनाद, दुहाई, पुकार
बाईसे आज़ार- रंज, मुसीबत, रोग का कारण
नाला-सराई- दुःख का गान
जम्हूरियत- प्रजातंत्र
हिज्ब- पक्ष, दल
पेशवाई- नेतृत्व

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Comment

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Comment by राज़ नवादवी on December 14, 2018 at 2:48am

आदरणीय समर कबीर साहब, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और पसंदीदगी का मैं ममनून हूँ. सादर. 

Comment by Samar kabeer on December 13, 2018 at 11:02pm

जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

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