प्रेमी बोला , ' आओ प्यार की कुछ बातें करें .'
' हाँ यह हुई न बात . चलो करो .' प्रेमिका ने सहमति से सिर हिलाया .
' तो फिर रूठो .' प्रेमी ने कहा
" बात तो प्यार की हुई है , रूठने को क्यों कहा . " प्रेमिका इठलाई .
" रूठोगी नहीं तो तो प्यार की बातें करके तुम्हें मनाऊंगा कैसे . " प्रेमी ने समस्या रखी .
' पर रूठना तो तो मुझे आता नहीं है .' प्रेमिका इतराई
" तुम दूसरी तरफ मुँह करके बैठ जाओ . मैं जब बुलाऊँ तो मेरी तरफ देखना मत . "
" ये क्या बात हुई . मैं तुम्हारी तरफ देखूं ही नहीं , तुम कहीं चले गए तो मैं क्या करूंगी . इसलिए ये नहीं चलेगा ."
" मैं क्यों जाऊंगा और वो भी तुम्हें छोड़कर ."
" क्या पता . आज कल कहते हैं कि किसी पर भी भरोसा नहीं करना चाहिए आँख मूंदकर ."
" तुम तो मुझ पर बिना बात शक करने लगीं . जब अभी से तुम्हारा ये हाल है तो फिर जिंदगी में प्यार की बातें कैसे होंगी ! " प्रेमी झल्लाया
' ऐ ज्यादा बनने की जरूरत नहीं है . प्यार की बातें करने का प्रस्ताव तुम्हारा था , मेरा नहीं ."
' ठीक है बाबा ! मत करो प्यार की बातें . हम ऐसे ही ठीक हैं .' प्रेमी ने हमेशा की तरह समर्पण की मुद्रा अपना ली .
प्रेमिका कुछ देर तक उसकी मजबूर और असहाय हालत को देखती रही . कोमल ह्रदय कि तो थी ही . उसे लगा इस जीव की तो सांस ही रूक सकती है . ऐसा हो गया तो उस पर बिना वजह हत्या का पाप लग जायेगा . तब वह खुद को कैसे माफ़ करेगी . उसे प्रेमी पर तरस भी आ गया . उसने अपने चेहरे के भावों को बदला . हल्की सी मुस्कान को चेहरे पर आने दिया और धीमी गति सी उसकी ओर बढ़कर उसके हाथों को अपने हाथो में लिया . फिर दोनों ने साथ - साथ एक झाड़ीनुमा झुरमुट खोजा और उसके पीछे जाकर छुपकर बैठ गए . प्रेमी बोला , " अब तो करोगी न प्यार की बातें ."
उसने धीरे सी कहा , " हाँ प्यार भी करूँगीं और उसकी बातें भी करूंगीं ."
( मौलिक एवं अप्रकाशित )
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
Comment
जनाब सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा जी आदाब,लघुकथा का प्रयास अच्छा है लेकिन अभी कुछ समय चाहता है, इसे कुछ और कसने की ज़रूरत है,बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
// सूंदर रचना//
जनाब फूल सिंह जी,पटल की कुछ रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों पढ़ीं,जो इसी तरह की हैं,आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि ऐसी टिप्पणियां देना ओबीओ की परिपाटी नहीं है,ये सोशल मीडिया पर चलता होगा,चूँकि ये सीखने सिखाने का पटल है,इसलिए यहाँ किसी रचना पर टिप्पणी देते समय पहले रचनाकार को आदरपूर्वक सम्बोधित करते हैं फिर उसकी रचना पर तारीफ़ या आलोचना की जाती है,उम्मीद है आप इस परम्परा को निभाने में सहयोग करेंगे ।
सूंदर रचना
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