For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
  • Male
  • साहिबाबाद - गाज़ियाबाद - 201005 ( ऊ . प्र . )
  • India
Share on Facebook MySpace
 

Welcome, सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा!

Latest Activity

सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" हीरक जयंती अंक-75 (विषय मुक्त)
"लघुकथा कसक दिन ढले काफी देर हो चुकी थी । शाम, रात की बाहों में सिमटने को मजबूर थी । वो कमरे में अकेला था । सोफे का इस्तमाल बैड की तरह कर लिया था उसने । आदतन अपने मोबाईल पर पुरानी फिल्मों के गाने सुनकर रात के बिखरे अन्धेरे में उसे मासूमियत पसरी सी…"
Jun 30, 2021

Profile Information

Gender
Male
City State
साहिबाबाद ( गाजिआबाद ) - 201005 ( उत्तर प्रदेश )
Native Place
हिसार ( हरियाणा )
Profession
प्रवक्ता ( जीव विज्ञानं ) - अवकाश प्राप्त
About me
साहित्य से जुड़ी सभी गतिविधियों के लिए

लघुकथा ( धारा के विपरीत के अंतर्गत ) हिम्मत उसकी इच्छा हुई कि बॉस को गाली दे , उसे उल्लू कहे , उसे कुत्ता कहे ,उसे कमीना भी कहे . पर वह ऐसा कुछ नहीं कह सका क्योंकि वह जानता है कि अगर उसने ऐसा कुछ भी कह दिया तो जो बॉस अकारण उससे खुंदक खाता रहता है , कुछ कहने के बाद तो खुल कर उसकी बेज्जती करने लगेगा , तब आफिस में उसका काम करना तो दूर , जीना तक मुहाल हो जाएगा . वह कुछ नहीं कर सकेगा और उसके अपने दोस्त कहे जाने वाले लोग भी उससे किनारा कर लेंगे . अगर पानी सिर से ऊपर निकल गया तो हो सकता है उसे पचीस हजार पगार देने वाली इस सफेदपोश नौकरी से ही हाथ धोना पड जाए . भगवान न करे ऐसा हो गया तो शालू का क्या होगा और शालू को छोड़ भी दे तो नन्हे आराध्य के लिए भी मुश्किल हो जाएगी , उस नन्ही जान ने पिछले महीने ही अपना पहला जन्म - दिन मनाया है , उसका दूध कहाँ से आएगा ? वह कुछ नहीं कर सकता . पर आदमी की इज्जत भी तो कोई चीज होती है . महाराणा प्रताप ने अपनी कौम की आबरू के लिए घास की रोटियां तक खा ली थीं तो क्या वह है क़ि इस नौकरी की खातिर जिल्लत की जिंदगी जीने को मजबूर है . उसे याद है उसकी पिछली नौकरी में जब इंचार्ज ने उसकी नियत पर शक किया था तो उसने इंचार्ज को खरी - खोटी सुनाने में एक सेकेण्ड की देरी नहीं की थीं और नौकरी को लात मार घर आ गया था . तब आराध्य होने को था . सारी कहानी सुनने के बाद शालू ने कहा था , " मुझे अपने पति पर गर्व है . '' तब उसने रूआँसा होकर पूछा था ," तुम्हे गर्व तो है पर इस गर्व से घर का खर्च कैसे चलेगा " शालू ने न जाने कहाँ से तीस हजार रूपये लाकर उसके हाथ में रखते हुए कहा था , " आपने अपनी बीबी को समझ क्या रखा है . इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएट है . वो घर के आर्थिक आपातकाल के लिए हमेशा तैयार रहती है . आप घर - खर्च के लिए जो रुपए मुझे देते हैं , वे सारे खर्च कर देना , मेरी फितरत में नहीं है . आपकी इज्जत से बढ़कर मेरे लिए और कुछ नहीं है . उस घमंडी को उसकी औकात बता कर , आपने बहुत अच्छा काम किया है . वो इंसान ही क्या जो अपनी इज्जत का सौदा कर ले . जिसमे काबलियत होती है , नौकरी खुद उसका पीछा करती है . आपमें हुनर है इसलिए मुझे उम्मीद ही नहीं विशवास भी है कि आप को जल्द ही पहले से भी अच्छी नौकरी मिल जाएगी . " हुआ भी ऐसा ही . उसे बीस की जगह पच्चीस हजार की नौकरी मिल गयी . कुछ दिन तो सब कुछ ठीक चला पर बाद में यहां भी वही हाल शुरू हो गया . असल में उससे भी बुरा . अब क्या किया जाय . चिता ने उसे घेर लिया .उसकी भूख मर गयी . शालू कमाल की मनोवैज्ञानिक है . बिना बताये ही उसकी परेशानी समझ लेती है , " क्या बात है आजकल तुम्हारी भूख को क्या हो गया है . लगता है जैसे मजबूरी में खाना खा रहे हो . तबियत तो ठीक तो है न ." " मेरी तबियत को क्या हुआ ?सब कुछ ठीक तो है . तुम ऐसा क्यों कह रही हो . पूरा खाना ले जाता हूँ और पूरा खाना खाता भी हुँ ." " पाँच साल से बीबी हूँ आपकी . आपकी रग - रग से वाकिफ हुँ . लगता है इस आफिस का बॉस भी बकवास और खडूस है ." उसे लगा , शालू ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया है . वह रूआसाँ हो गया , " मैं क्या करूं शालू . जरूर मुझमे ही कोई कमी है जो कहीं एडजेस्ट ही नहीं हो पाता . और लोग भी तो हैं . सालों - साल एक ही जगह , एक ही आफिस में , एक ही बॉस के नीचे गुजार देते हैं . उनका तो कोई झगड़ा नहीं होता अपने बॉस से ." " क्योंकि वो लोग आपकी तरह खुद्दार और ईमानदार नहीं होते . बेईमानी उनकी कमजोरी और चापलूसी उनकी फितरत होती है . छोड़नी पड़े तो छोड़ दीजिये इस नौकरी को पर अपने उसूलों को मत छोड़िएगा . " लगा शालू नहीं , रानी लक्ष्मी बाई बोल रही है . " हम तो कुछ दिन भूखे रह लेंगे शालू पर अब हम सिर्फ दो नहीं हैं . नन्हां आराध्य भी तो है . उसका क्या होगा ? " " आपको पता है न कि आराध्य एक खुद्दार बाप का बेटा है .वो भी आपकी तरह हिम्मत हारने वालों में से नहीं है ." उसने धीरे से कहा " हम सब की हिम्मत तो तुम हो शालू . बड़ी जोर की भूख लगी है , जल्दी से खाना लगा दो ." ( मौलिक एवम अप्रकाशित ) सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

लघुकथा ........................हैरत ( "मौलिक व अप्रकाशित" )

रात गहरा गयी थी . पर नींद की गहराई ललुआ से कोसों दूर थी और वह करवटें बदलने को मजबूर था .
यूँ तो रात कल भी गहराई थी पर कल नींद को थकी हुई मांसपेशियों ने जकड़ लिया था .देहात से आये हुए लालू ने , जो शहर में आने के बाद अब लाला के नाम से जाना जाता है ने कल दिन भर काम करवाने के बाद कहा था कि मजदूरी के पैसे कल देगा .
आज फिर उसने कल कि तरह मलबा साफ़ करवाया पर जब मजदूरी देने की बारी आयी तो फिर दगा दे गया . बोला , " बैंक गया था पर पैसे नहीं निकाल पाया ."
ललुआ ने पुछा , " क्यों ? " तो बोला , " बैंक - बाबू का बच्चा , बाबू नहीं , हरामी का पिल्ला है . कहता है कि हमारे दस्तखत बराबर नहीं हैं ."
ललुआ बोला , " दस्तखत बराबर नहीं हैं , इसका क्या मतलब ? "
" मतलब तो उस हराम की जात को पता होंगे . कह रहा था दस्तखत मेल नहीं खाते . "
" लाला जी , अब हमारी मजदूरी का क्या होगा ? " उसने गुहार लगाई .
" होना क्या है , घबराओ मत जिस दिन दस्तखत मेल खा जायेंगे , उस दिन तुम्हारी मजदूरी खरी . अरे भाई तुमने ईमानदारी से काम किया है ,कोई हरामखोरी थोड़े की है . " लाला ने कहा .
भूख कल भी थी पर एक आस थी कि कल भूख नहीं होगी , सो नींद आ गयी. भूख आज फिर है , भूख कल नहीं होगी , इसका कोई ठिकाना नहीं है . इसलिए नींद आँखों से कोसों दूर है .
अब हालत यह हो गयी कि वो रतजगे की हालत में है . सोच रहा है कि क्या करे ? या तो भरे पेट वाले लाला को मार डाले या फिर खुद भूखा मर जाये !
दरवाजे पर जोर की टक्कर के कारण उठ बैठा है . अँधेरे में लाला की कांपती आवाज ने उसे डरा दिया , " ओ ललुआ . लें अपनी दस दिन की पगार . कल काम पर आना मत भूलियो . पगार बरोबर है , अच्छी तरह से गिन लें . "
इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता , लाला जा चुका है .बड़े नोटों का एक बण्डल उसकी गोद में टिम - टीमाने लगा . उस टिम - टिमटिमाहट के कारण उससे सोते नहीं बना तो वह बाहर निकल आया . उसने पाया कि वहां उसकी बस्ती के लोग टी.वी के सामने झुण्ड बना कर हैरत से बैठे थे .

सुरेंद्र कुमार अरोड़ा

सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा's Blog

छोटी सी प्रेम कहानी ( लघुकथा )

प्रेमी बोला , ' आओ प्यार की कुछ बातें करें .'

' हाँ यह हुई न बात . चलो करो .' प्रेमिका ने सहमति से सिर हिलाया .

' तो फिर रूठो .' प्रेमी ने कहा

" बात तो  प्यार की हुई है , रूठने को क्यों कहा . "  प्रेमिका इठलाई .

" रूठोगी नहीं तो   तो प्यार की बातें करके तुम्हें मनाऊंगा कैसे . "  प्रेमी ने समस्या रखी .

' पर रूठना तो  तो मुझे आता नहीं है .' प्रेमिका इतराई

" तुम दूसरी तरफ मुँह करके बैठ जाओ . मैं जब बुलाऊँ तो मेरी तरफ देखना  मत . "

" ये क्या बात…

Continue

Posted on December 10, 2018 at 8:30pm — 3 Comments

कविता - तो कुछ बात बने

तो कुछ बात बने

 

अंधेरों   की नहीं ,जीवन में उजाले की  कोई बात करो  तो कुछ बात बने

निकला हैं दिन अभी,सूरज की किरणों की कोई बात करो तो कुछ बात बने .

 

 क्यूँ बात  करते हों उन  पतझड़ों की,नव कोपलों की कोई बात करो तो कुछ बात बने

 न  बातें करो उदास रतजगों की ,प्यार  भरी बंसी की कोई बात करो तो कुछ बात बने

 

सूखी हुई धरा  पर बरसा हैं बरखा का जल अभी ,बरस जाए ये भरपूर तो कुछ बात बने

मेहरबां हुई  हैं तुम्हारी नजर एक मुद्द्त के बाद , ठहर…

Continue

Posted on September 23, 2015 at 11:00pm — 1 Comment

बचत (लघुकथा)

अन्य  दिनों की अपेक्षा , सुमेर के चेहरे पर तनाव की जगह संतोष झलक रहा था . उनके मन में पत्नी के प्रति क्रतज्ञता के भाव बार - बार उभर कर , शब्दों के माध्यम से निकलना चाहते थे . " बहुत बार तुम जटिल सिचुऐशन को भी बड़े अच्छे से टेकल कर लेती हो . मुझे जरा भी उम्मीद नहीं थी कि इस मामले में इतनी आसानी से सफलता मिल जाएगी .वरना भागीरथ - बाबू ने तो डरा ही दिया था .”  खाने की थाली में चपाती की मांग के साथ उसने  पत्नी की तारीफ़ की . 

 " लो यह क्या बात हुई , जी ! हम उस पुलिसीए को कुछ दे ही रहे…

Continue

Posted on September 4, 2015 at 9:00pm — 5 Comments

कबाड़ (लघुकथा)

" बाबू जी ! कबाड़ी वाले को क्यों बुलाया था ? "

" बस , यूँ ही . बेटा ."

" यूँ ही क्यों बाबू जी  ! आप तो उससे कह रहे थे कि इस घर का सबसे बड़े  कबाड़ आप हैं और वह आपको ही ले जाये ."

" इसमें झूठ क्या है ? इस घर में मेरी हस्ती कबाड़ से ज्यादा है क्या ? "

" बाबू जी , प्लीज़ आप  ऐसा न कहिये . क्या मैं या इंदु  आपका ख्याल नहीं रखते ? "

" दिन भर कबाड़ की तरह घर के इस  या उस कोने में पड़ा रहता हूँ और वक्त - बेवक्त तोड़ने के लिए दो रोटियाँ मिल जाती हैं , तुम दोनों  ने मेरे…

Continue

Posted on August 16, 2015 at 9:30am — 5 Comments

Comment Wall (2 comments)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 4:27pm on August 12, 2015,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

स्वागत अभिनन्दन 

ग़ज़ल सीखने एवं जानकारी के लिए

 ग़ज़ल की कक्षा 

 ग़ज़ल की बातें 

 

भारतीय छंद विधान से सम्बंधित जानकारी  यहाँ उपलब्ध है

|

|

|

|

|

|

|

|

आप अपनी मौलिक व अप्रकाशित रचनाएँ यहाँ पोस्ट (क्लिक करें) कर सकते है.

और अधिक जानकारी के लिए कृपया नियम अवश्य देखें.

ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतुयहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

 

ओबीओ पर प्रतिमाह आयोजित होने वाले लाइव महोत्सवछंदोत्सवतरही मुशायरा वलघुकथा गोष्ठी में आप सहभागिता निभाएंगे तो हमें ख़ुशी होगी. इस सन्देश को पढने के लिए आपका धन्यवाद.

At 10:54am on August 10, 2015,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…
ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार में हार्दिक स्वागत है।
 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ. संजय जी,/शाम को पुन: उपस्थित होऊंगा.. फिलहाल ख़त इस ग़ज़ल का काफ़िया नहीं बनेगा ... ते और तोय का…"
1 minute ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"//चूँकि देवनागरी में लिखता हूँ, इसलिए नस्तालीक़ के नियमों की पाबंदी नहीं हो पाती है। उर्दू भाषा और…"
3 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और सुख़न नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। गिरह भी अच्छी लगी है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीया ऋचा जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें।  6 सुझाव.... "तू मुझे दोस्त कहता है…"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय संजय जी, //अगर जान जाने का डर बना रहे तो क्या ख़ाक़ बग़वत होगी? इस लिए, अब जब कि जान जाना…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"//'इश्क़ ऐन से लिखा जाता है तो  इसके साथ अलिफ़ वस्ल ग़लत है।//....सहमत।"
5 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमीर जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें। "
5 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमित जी, बहुत धन्यवाद।  1 अगर जान जाने का डर बना रहे तो क्या ख़ाक़ बग़वत होगी? इस लिए,…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय यूफोनिक अमित जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और सुख़न नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
5 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमीर जी, बहुत धन्यवाद। "
5 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service