For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अन्य  दिनों की अपेक्षा , सुमेर के चेहरे पर तनाव की जगह संतोष झलक रहा था . उनके मन में पत्नी के प्रति क्रतज्ञता के भाव बार - बार उभर कर , शब्दों के माध्यम से निकलना चाहते थे . " बहुत बार तुम जटिल सिचुऐशन को भी बड़े अच्छे से टेकल कर लेती हो . मुझे जरा भी उम्मीद नहीं थी कि इस मामले में इतनी आसानी से सफलता मिल जाएगी .वरना भागीरथ - बाबू ने तो डरा ही दिया था .”  खाने की थाली में चपाती की मांग के साथ उसने  पत्नी की तारीफ़ की . 

 " लो यह क्या बात हुई , जी ! हम उस पुलिसीए को कुछ दे ही रहे थे , उससे ले क्या रहे थे ?"

 " सरला रिश्वत को यह लोग अनुकम्पा नहीं , अधिकार मानते हैं और वह  भी अपनी शर्तों पर . देखा नहीं कैसे कह रहा था  कि जी पास -पोर्ट आपके बेटे का  बनेगा ....... वह  विदेश जायेगा ,पैसा कमाएगा ….विदेश में  घूमेगा और कलम की जिम्मेदारी हम लेंगे ........मुझे  क्या मिलेगा ! आपके दिए दो हजार में से  , पाँच सौ दरोगा जी  और पाँच सौ मुंशी के पास चले जाएंगे , मेरे हिस्से तो सिर्फ एक ही हजार आएंगें . भगीरथ बता रहा था कि उसने अपने बेटे के पास -पोर्ट के लिए पच्चीस सौ दिये हैं .यह तो तुम थीं जो कह  - सुन कर उसे पन्द्रह - सौ में ही राज़ी कर लिया वरना मैं तो पूरे दो हजार ही  देता ."

 " जाने दो जी , अगर आप बीच में न बोल पड़ते  तो मैं तो मरे को मुश्किल से एक हजार ही देती ."

 “ चलो कोई बात नहीं हमारा काम हो गया और पाचँ सौ रूपये बच भी गये .." 

 " आजकल आपकी भूख को क्या हो गया है ! एक चपाती और लीजिए न !"

   सुमेर ने चपाती लेते हुए कहा , “ अब हमारा अंगद कभी भी विदेश जा सकेगा ." सुमेर बाबू ने पानी का गिलास मुहँ से हटाते हुए सन्तोष की सांस ली, " और सुनो इस बात का जिकर भगीरथ की मीस्सिज से मत करना , उसे तो पच्चीस सौ ही बताना , नहीं तो खामखा जलेगी .”

 " मैं मुर्ख हूँ क्या ,उसे तो पच्चीस सौ ही कहूँगी ."

 खाना खाकर सुमेर बाबू आराम से टी .वी पर पुराने जमाने की क्लासिक फिल्म देखने लगे.

 

( मौलिक एवं अप्रकाशित )                   

Views: 579

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा on September 7, 2015 at 7:57am

कांता जी ! मेरी कई बार इच्छा होती है कि आपको नमन करूँ . आज के कपट भरे समाज में अत्यंत सरल ह्रदय की स्वामिनी हैं आप और प्रायः इतनी निष्कपटता से अपनी बात को कहती हैं कि मन करता है कि आप जैसी एक़ बहन जीवन में होनी चाहिए थी जो कभी - कभी माँ की तरह सच्ची सलाह देती और जरूरत पड़ने पर डांट भी देती . (यह तो भावुक सी बात हो गयी ). बहरहाल ' बचत ' के मर्म को कुछ हद तक आपने पहचान लिया . मेरा आशय यहाँ इतना भर था कि एक़ आम आदमी जो भ्र्ष्टाचार की मुखालफत सार्वजनिक रूप से तो करता है पर भ्र्ष्टाचार से इस कदर लिपटा भी है कि अपनी सुविधा - असुविधा के चलते उसे अपनाने से उसे कोई परहेज नहीं है . शायद यही वो वजह है कि हममें से हर कोई , हर किसी को ठग रहा है और हल कुछ निकल नहीं रहा ( मीत व्ही लगता है प्यारा / जो कर सकता वारा - न्यारा ). स्वार्थ छोटा या बड़ा , उसकी पूर्ति होनी चाहिए ...बस .
सौरभ जी , अर्चना जी आपका व् अन्य मित्रों का बहुत - बहुत आभार कि ' बचत ' आपकी नजरों से बच नहीं पायी ......................सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

Comment by kanta roy on September 6, 2015 at 7:45pm
वाह !!! आदरणीय सुरेन्द्र जी , हमेशा की तरह आज भी ये कथा बेहद शानदार बनी है । अक्षरों को प्राण भर जीवित कर उठना तो कोई आप से सीखे । भाव संप्रेषण अद्भुत हुआ है और कथा का संदेश कई चिंतन दे जाता है । मध्यमवर्गीय जीवन में पाई - पाई बचाने की जद्दोजहद लिये एक संकीर्ण मानसिकता भी दिखाई है इस वर्ग की । यही वो मानसिकता है जो अनायास ही अनाचार को बढावा दे बैठती है । दुसरों को गलत जानकारी देकर उसे ठगाते हुए देखने की मानसिकता । यही वो मानसिकता है कि सब्जी वाला आपको बीस की जगह पंद्रह का भाव आपसे करके ,आपको कहता है कि अपने पडोसी को मत बताना और वो अपने पडोसी के इतर सब्जी वाले की बातों में पड़ जाती है । क्या पडोसी का महत्व उस रिश्वतखोर से कम हो गया या सब्जी वाले से । ये मानसिकता कि मै ना ठगी जाऊँ भले मेरी पडोसन अर्थात अपना कोई भी ठगा जाये !!!! मुझे बडी कोफ्त होती है ऐसी बातों से । जो चीज़ हमारे लिये सुखकर हुआ वो हमारे सभी अपनों के लिए भी होना चाहिए । ऐसी ही सोच दहेज को बढावा देती है । शादी व्याह में आठ लाख खर्च करेंगे तो बारह लाख का ढिंढोरा पीटेंगे । क्या इस तरह की मानसिकता अनाचार को बढावा नहीं देती है ? मै ऐसी सोच जो सिर्फ स्वंय के हित को साधने तक ही सीमित हो उसका पुरजोर विरोध करती हूँ ।
इस कथा का पंच इतना उद्वेलित कर गया मुझे कि आप समझ ही सकते है कि ये कथा कितनी शानदार बनी है । बधाई आपको नमन सहित ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2015 at 4:14pm

तथ्य और कथ्य अत्यंत श्लाघनीय ! हार्दिक बधाइयाँ.. 

मध्यमवर्गीय परिवारों की परिस्थितियों और भावदशाओं को प्रस्तुत करती इस भोली-सी प्रस्तुति केलिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.

तनिक मेरी ओर से - पंक्चुएशन के प्रति संवेदनशीलता पंक्तियों की संप्रेषणीयता बढ़ा देती है. 

Comment by Archana Tripathi on September 6, 2015 at 12:39am
बेहतरीन प्रस्तुति सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा जी ,हार्दिक बधाई आपको ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 5, 2015 at 9:02pm

आदरणीय  सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा जी, आपने बहुत ही संजीदा ढंग से अपनी अनुभवी कलम से कथ्य और मर्म को शाब्दिक किया है. माध्यम वर्गीय परिवारों में बचत को देखने की आपकी सूक्ष्म दृष्टि और व्यवस्था के प्रति सजग भी. एक सशक्त लघुकथा जो हम जैसे नए अभ्यासियों के लिए एक पाठशाला भी है और प्रेरित करती रचना भी. बहुत बहुत आभार इस प्रस्तुति के लिए. तारीफ के शब्द नहीं है बस नमन आपको....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Jul 29
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Jul 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service