क़ज़ा के वास्ते ये इंतिज़ाम किसका है ।
तेरे दयार में जीना हराम किसका है ।।
उसे है ख़ास ज़रूरत जरा पता करिए ।
बड़े सलीके से आया सलाम किसका है ।।
दिखे हैं रिन्द बहुत तिश्नगी के साथ वहाँ ।
कोई बताए गली में मुकाम किसका है ।।
है जीतना तो ख़यालात ऐब पर ले जा ।
खबर तो कर वो अभी तक गुलाम किसका है ।।
वो पूछ बैठे हमीं से यूँ अजनबी बनकर ।
के उनके हुस्न पे लिक्खा कलाम किसका है ।।
यही सवाल है साकी से आज महफ़िल में ।
छलक गया जो सरे बज़्म जाम किसका है ।।
फ़ना हुए जो वतन पर वो नाम भूल गए ।
तुम्हारे मुल्क़ में अब एहतराम किसका है ।।
ग़रीब आज भी भूखा मिला है फिर मुझको ।
यहां फ़िज़ूल का ये ताम-झाम किसका है ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ. भाई नवीन जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
आ0 कबीर सर सादर नमन और आभार । उसे है खास ज़रूरत .......भाव कुछ इस तरह लिया है मैंने
बात सलाम करने के लहजे पर है । ज़रूरत पर लोगों के सलाम करने का अंदाज़ बदल जाता है ।
है जीतना तो खयालात .......
पूरे शेर का मफ़हूम कुछ इस प्रकार है
किसी पर जीत हासिल करनी है तो सबसे पहले उसकी कमियों पर ध्यान केंद्रित करो । अगर पता चल जाये कि अमुक व्यक्ति में ऐब कहाँ कहाँ पर है या वह किस नशे का गुलाम है तो उसे हराना आसान होगा । बस इतना सा सन्देश है सर ।
अदू का अर्थ नहीं समझ पाया ।
बेहतरीन इस्लाह के लिए हार्दिक आभार। आपकी बात महत्वपूर्ण है मैं शेर बदल दूंगा ।
सादर
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'उसे है ख़ास ज़रूरत जरा पता करिए ।
बड़े सलीके से आया सलाम किसका है'
उसे ख़ास ज़रूरत क्यों है? शैर का मफ़हूम स्पष्ट नहीं है,ऊला मिसरा यूँ कर लें:-
'ख़ुशी अदू को बहुत है,ज़रा पता कीजै'
'है जीतना तो ख़यालात ऐब पर ले जा ।
खबर तो कर वो अभी तक गुलाम किसका है'
इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं,ख़ारिज करना उचित होगा ।
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