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अंतिम स्वीकार ....

अंतिम स्वीकार ....

जितना प्रयास किया
आँखों की भाषा को
समझने का
उतना ही डूबता गया
स्मृति की प्राचीर में
रिस रही थी जहाँ से
पीर
आँसूं बनकर
स्मृति की दरारों से
रह गया था शेष
अंतर्मन में सुवासित
अंतिम स्वीकार

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 375

Comment

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Comment by Sushil Sarna on February 19, 2019 at 7:47pm

आदरणीय  Samar kabeer जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on February 19, 2019 at 7:47pm

आदरणीय narendrasinh chauhan जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Samar kabeer on February 15, 2019 at 4:30pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by narendrasinh chauhan on February 14, 2019 at 4:05pm

खूब सुन्दर रचना 

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