व्यर्थ नहीं जाने देंगे हम ,वीरों की कुर्बानी को
चढ़ सीने पर चूर करेंगे,दुश्मन की मनमानी को
माफ नहीं हरगिज करना है, भीतर के गद्दारों को
बनें विभीषण वैरी हित में,बुलन्द करते नारों को ll
अन्न देश का खाने वाले, दुर्जन के गुण गाते हैं
जिस माटी में पले बढ़े हैं, उस पर बज्र गिराते हैं
छिपे हुए कुलघाती जब ये, मिट्टी में मिल जाएंगे
बचे सुधर्मी सरफरोश सब,राग वतन के गाएंगे ll
देश कुकर्मी हठधर्मी को, कर देना बोटी बोटी
उस भुजंग को कुचल मसल दो,जिसकी हो नियत खोटी
अतलवितल वैरी नभतल में,अब भूचाल मचा दो ना
खींचखींच दुश्मन की जिह्वा,उसको धूल चटा दो ना ll
पलक झपकते फतह मिलेगी,जाबाजी रणधीरों को
खुली छूट सेना को दे दो, फिर देखो तस्वीरों को
भूमण्डल के मानचित्र से,जुल्मराज मिट जाएगा
नतमस्तक होकर पग तल में, त्राहिमाम चिल्लायेगा ll
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
परमादरणीय समर साहब जी सादर अभिवादन आपका उत्साह वर्धन मेरे लिए बड़ी बात है ,दिल से आभार
जनाब डर.छोटेलाल सिंह जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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