++ग़ज़ल ++(221 2121 1221 212 /2121 )
सरदार लाज़मी हो असरदार तो जनाब
जो चुन सके अवाम के कुछ ख़ार तो जनाब
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ऐसा भी क्या शजर जिसे फूलों से सिर्फ़ इश्क़
कोई हो शाख शाख-ए-समरदार* तो जनाब (*फल से लदी डाली )
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होगा नसीब में कि न हो बात और है
ता-ज़ीस्त रहती प्यार की दरकार तो जनाब
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जज़्बात बर्ग-ए-गुल* से ही होते हैं क़ल्ब में (*गुलाब की पंखुड़ियां )
उगते न इस ज़मीं पे ख़स-ओ-ख़ार* तो जनाब (*घास और कांटे )
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गुंजाइश-ए-रफू रहे दिल के लिबास में
ताउम्र हो क़ुबूल न तक़रार तो जनाब
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लाज़िम है आँख कान खुले रखिये जानिए
क्या हो रहा है अब पस-ए-दीवार* तो जनाब(*दीवार के पीछे )
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कुछ तो निशान छोड़िये क़ायम रहे वज़ूद
चिल्ला रही है वादी-ए-कोहसार* तो जनाब (*पर्वतमाला )
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हैरत न हो जो शेर में बू यास्मीन* की (*चमेली का फूल )
पैदा समन* करेगा समन-ज़ार** तो जनाब (*चमेली का फूल **चमेली का बाग़ )
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मिट्टी में जिस की खेल हुए हम जवाँ 'तुरंत'
होना वतन पे चाहिए पिंदार* तो जनाब (*गर्व )
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय समर कबीर साहेब आदाब | आपकी हौसला आफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया | ठीक है सर मैंने सोचा पत्तियां तो पेड़ की होती है गुलाब की तो पंखुड़ियां ही होगीं |
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
जज़्बात बर्ग-ए-गुल* से ही होते हैं क़ल्ब में (*गुलाब की पंखुड़ियां )'
इस मिसरे में 'बर्ग' का अर्थ 'पत्ता' होता है,पंखुड़ी नहीं,देखियेगा ।
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