डियर संस्कार,
चौंक तो गये होगे! मोबाइल एप्स से, सोशल मीडिया पर या ऑनलाइन अपनी बात कहने के बजाय इस ख़त से ही अपने अंजाम से वाक़िफ़ करा रहा हूं तुम्हें। आख़िर तुमने ही तो सुसाइड के लिए मज़बूर कर दिया! ख़ूब घमंड था मुझे अपनी ऑनलाइन पढ़ाई पर! माडर्न अपडेटिड छात्र समझने लगा था मैं अपने आपको। स्कूल की पढ़ाई, ट्यूशनों की पढ़ाई और फिर सोशल मीडिया, मोबाइल गेम, आधुनिक दोस्त-यारी, फ़ोटो-वीडियोग्राफ़ी इन सब में मशगूल रहते हुए ऑनलाइन अपने हसीन करियर की हसीन रणनीति बनाया करता था मैं! रात भर जागता था उन दिनों!
"हां, तैयार हूं मैं! ऑनलाइन प्रेक्टिस पेपर्स हल कर पूरा सिलेबस मुझमें समा गया है।" यही आभास होता रहा मुझे! हर पेपर की पिछली रात मुझे यही महसूस होता था। अपनी फाइनल परीक्षाओं के प्रति ज़बरदस्त आत्मविश्वास था मुझे।
"तुम तो उत्तर पुस्तिकाएं पूरी भर कर आना। प्रोफेशनल परीक्षक बढ़िया ही नंबर देते हैं!" मेरे दोस्तों ने समझाया था न कि परीक्षक बहुत उदार होते हैं। मैं उत्तर पुस्तिकाओं को पूरा भरता रहा। मुझे क्या पता था कि मैंने उनमें ऐसा क्या लिखा कि ईमानदार परीक्षक की कलम ने मेरी उत्तरपुस्तिकाओं का ख़ून कर दिया। कितनी ज़ालिम होती है ईमानदार शिक्षक की क़लम! मैं लगभग सभी मुख्य विषयों में फेल हो गया।
अब मुझे तुम बहुत याद आ रहे हो दोस्त! मैं तुम्हें क़िताबी कीड़ा, कूप-मण्डूक और भी न जाने क्या-क्या कहकर चिढ़ाकर ज़माने से कटा इंसान कहता था। आज मेरी उस ग़लत और घटिया सोच ने ख़ुदकुशी कर ली है! अब मैं तुम्हारी सोच की शरण में हूं। मैं भी तुम्हारे नेक संतुलित व संयमित सुव्यवस्थित तरीक़े से अपने करियर निर्माण में जुटना चाहता हूं! मैं हवा में उड़ रहा था। तुम सही साबित हुए!
(क्यू. ई. डी.) इति सिद्धम!
अब तुम्हारा मित्र व शिष्य,
"अभिनव"
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदाब। मेरी इस रचना के अवलोकन और प्रोत्साहक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय समर कबीर साहिब, आदरणीया नीलम उपाध्याय साहिबा और आदरणीय तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब।
आदरणीय शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी, अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति पर हार्दिक ,बधाई स्वीकार करें ।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
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