ईद ...
दीद आपकी ईद पर, है अनुपम सौगात।
ईद मुबारक कर गई , आज ईद की रात ।।
मेघों की चिलमन हटी, हुई चाँद की दीद।
भेद-भाव सब भूलकर, कहें मुबारक ईद।।
दीद आपकी दे गई, ईदी हमको आज।
धड़कन के बजने लगे, देखो दिल में साज ।।
अर्श पर्श पर आज है, ईद मिलन का राज ।
ईद मुबारक सब कहें , इक दूजे को आज ।।
तरस रही हैं दीद को,कब आएगी ईद।
आएगी जब ईद, तो कैसे होगी दीद।।
बिना आपके बे-मज़ा, हो जाएगी ईद।
जी लेंगे कुछ और दिन, दे दो अपनी दीद।।
सभी को ईद मुबारक
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
'दीद आपके दे गए, ईदी हमको आज।
धड़कन के बजने लगे, देखो दिल में साज ।।'
इस दोहे की पहली पंक्ति में व्याकरण दोष भी है,जो मैं बताना भूल गया था,क्योंकि 'दीद' शब्द स्त्रीलिंग है,इसे यूँ कर सकते है:-
'दीद आपकी दे गई,ईदी हमको आज'
और दूसरी पंक्ति में 'साज़' में भी बिंदी है,इसे आप ही दुरुस्त करें ।
बाक़ी ठीक है ।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन पर आपकी आत्मीय समीक्षा एवं प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया। सर आपके द्वारा इंगित त्रुटि गंभीर है , मैं स्वीकारता हूँ शायद बिंदी को मैं इग्नोर कर गया ... खैर मैंने इसे एडिट कर दिया है आशा है आपको संशोधन पसंद आएगा। आपको सपरिवार ईद मुबारक सर।
जनाब सुशील सरना जी आदाब,ईद के मौक़े पर अच्छे दोहे लिखे आपने,बधाई स्वीकार करें ।
'दीद आपकी ईद की, है अनुपम सौगात।
देते हैं हम आपको, ईद मुबारकबाद।।'
इस दोहे में तुकांतता सहीह नहीं है,देखियेगा ।
'दीद आपके दे गए, ईदी हमको आज।
धड़कन के बजने लगे, देखो दिल में साज़।।
अर्श फर्श पर ईद की, गूँज रही आवाज।
इक दूजे को कह रहे, ईद मुबारक आज।।'
इन दोहों में भी तुकांतता सहीह नहीं है,एक पंक्ति में बिंदी वाला शब्द है,दूसरी में बिना बिंदी का,देखियेगा ।
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