शब्द ....
शब्द
बतियाते हैं तो
सृजन बन जाते हैं
शब्द
बतियाते हैं तो
वाचाल हो उठती है
अंतस भावों की
पाषाण प्रतिमा
शब्द
बतियाते हैं तो
बन जाते हैं
कालजयी
शिलालेख
शब्द
बतियाते हैं तो
छीन लेते हैं
मौन में दबे दर्द की
मौनता को
इसीलिए
शब्दों का बतियाना
बड़ा अच्छा लगता है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब .... सृजन आपकी आत्मीय प्रशंसा का आभारी है।
जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
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