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अब न चहरे की शिकन कर दे उजागर आइना ।
देखता रहता है कोई छुप छुपा कर आइना ।।
गिर गया ईमान उसका खो गये सारे उसूल ।
क्या दिखायेगा उसे अब और कमतर आइना ।।
सच बताने पर सजाए मौत की ख़ातिर यहां ।
पत्थरो से तोड़ते हैं लोग अक्सर आइना ।।
आसमां छूने लगेंगी ये अना और शोखियां ।
जब दिखाएगा तुझे चेहरे का मंजर आइना ।।
अक्स तेरा भी सलामत क्या रहेगा सोच ले ।
गर यहां तोड़ा कभी बनके सितमगर आइना ।।
आरिजे गुल पर तुम्हारे है कोई गहरा निशान ।
अब दिखायेगा ज़माना मुस्कुरा कर आइना ।।
खुद के बारे में बहुत अनजान होकर जी रहा ।
आजकल रखता कहाँ इंसान बेहतर आइना ।।
तोड़ देंगे आप भी यह हुस्न ढल जाने के बाद ।
एक दिन बेशक़ चुभेगा बन के निश्तर आइना ।।
कुछ तो उसकी बेक़रारी का तसव्वुर कीजिये ।
जो सँवरने के लिए देखा है शब भर आइना ।।
हैं लबों पर जुम्बिशें क्यूँ इश्क़ के इज़हार पर ।
जब बताता है तुझे तेरा मुक़द्दर आइना ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अ प्रकाशित
Comment
आदरणीय नवीन भाई , ग़ज़ल के बेहतर प्रयास लिए बधाई स्वीकार करें , आदरणीय समर भाई जी की इस्लाह के बाद और बेहतर हो गयी है .. पुनः बधाई !
आ0 कबीर सर इस महत्वपूर्ण इस्लाह हेतु हार्दिक आभार और नमन ।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'अब न चहरे की शिकन कर दे उजागर आइना'
इस मिसरे में "अब न" शब्द भर्ती का है,देखियेगा ।
'सच बताने पर सजाए मौत की ख़ातिर यहां ।
पत्थरो से तोड़ते हैं लोग अक्सर आइना'
इस शैर का ऊला पूरी तरह स्पष्ट नहीं,यूँ कर सकते हैं:-
'जग पे ज़ाहिर हो न जाये सच इसी डर से यहाँ'
'आसमां छूने लगेंगी ये अना और शोखियां ।
जब दिखाएगा तुझे चेहरे का मंजर आइना'
इस शैर के ऊला मिसरे में 'अना' और 'शौख़ियाँ' भर्ती के शब्द है,ग़ौर करें ।
'आरिजे गुल पर तुम्हारे है कोई गहरा निशान'
इस मिसरे में 'आरिज़-ए-गुल' का अर्थ है 'गुल के आरिज़' इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-
'फूल से आरिज़ पे है तेरे कोई गहरा निशाँ'
'जो सँवरने के लिए देखा है शब भरआइना'
इस मिसरे में 'देखा' को "देखे" कर लें ।
'हैं लबों पर जुम्बिशें क्यूँ इश्क़ के इज़हार पर ।
जब बताता है तुझे तेरा मुक़द्दर आइना'
इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,दूसरी बात ये कि आइना मुक़द्दर नहीं बताता,इस हिसाब से ये शैर भर्ती का है ।
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