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हुस्न का बेहतर नज़ारा चाहिए ।
कुछ तो जीने का सहारा चाहिए ।।
हो मुहब्बत का यहां पर श्री गणेश ।
आप का बस इक इशारा चाहिए ।।
हैं टिके रिश्ते सभी दौलत पे जब ।
आपको भी क्या गुजारा चाहिए ।।
है किसी तूफ़ान की आहट यहां ।
कश्तियों को अब किनारा चाहिए ।।
चाँद कायम रह सके जलवा तेरा ।
आसमा में हर सितारा चाहिए ।।
फर्ज उनका है तुम्हें वो काम दें ।
वोट जिनको भी तुम्हारा चाहिए ।।
अब न लॉलीपॉप की चर्चा करें ।
सिर्फ हमको हक़ हमारा चाहिए ।।
कब तलक लुटता रहे इंसान यह ।
अब तरक्की वाली धारा चाहिए ।।
जात मजहब से जरा ऊपर उठो ।
हर जुबाँ पर ये ही नारा चाहिए ।।
अम्न को घर में जला देगा कोई ।
नफरतों का इक शरारा चाहिए ।।
शब्दार्थ - शरारा - चिंगारी
- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ0 डॉ छोटे लाल सिंह जी हार्दिक आभार।
आ0 सुशील शरण साहब हार्दिक आभार ।
आ0 रक्षिता सिंह जी हार्दिक आभार ।
आदरणीय नवीन जी नमस्कार,
प्रथम चार पंक्तियाँ बहुत ही शानदार पढकर आनंद आ गया ,बहुत बहुत मुबारक।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
'हुस्न का बेहतर नज़ारा चाहिए'
इस मिसरे में 'बहतर' की जगह "हमको" शब्द उचित होगा,विचार करें ।
'चाँद कायम रह सके जलवा तेरा ।
आसमा में हर सितारा चाहिए'
इस शैर के सानी मिसरे में 'हर' शब्द भर्ती का है,और 'आसमा' को "आसमाँ" कर लें
हुस्न का बेहतर नज़ारा चाहिए ।
कुछ तो जीने का सहारा चाहिए ।।
हो मुहब्बत का यहां पर श्री गणेश ।
आप का बस इक इशारा चाहिए ।।
वाह आदरणीय वाह बहुत ही उम्दा ग़ज़ल का सृजन हुआ है। दिल से बधाई स्वीकारें।
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी बहुत ही बेहतरीन गजल वाह मन मगन हो गया , बहुत बहुत बधाई
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