सुकून-ओ-अम्न पर कसनी ज़िमाम अच्छी नहीं हरगिज़
अगर पैहम है तकलीफ़-ए-अवाम अच्छी नहीं हरगिज़
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निज़ामत देखती रहती वतन में क़त्ल-ओ-गारत क्यों
नज़रअंदाज़ की खू-ए-निज़ाम अच्छी नहीं हरगिज़
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न रोके तिफ़्ल की परवाज़ कोई भी ज़माने में
कभी सपने के घोड़े पर लगाम अच्छी नहीं हरगिज़
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किसी को हक़ नहीं है ये कि ले क़ानून हाथों में
मगर सूरत वतन में है ये आम अच्छी नहीं हरगिज़
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क़ज़ा को घर बुलाना है तुम्हें तो ख़ूब पी लेना
वगरना मय है पक्की या है ख़ाम अच्छी नहीं हरगिज़
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शग़ल कोई ज़रूरी है मुहब्बत और पीरी में
शब-ए-ग़म और तन्हाई की शाम अच्छी नहीं हरगिज़
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ज़माना आ गया औलाद चाहे आज आज़ादी
किसी सूरत अब इन पर रोकथाम अच्छी नहीं हरगिज़
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कभी फ़तवा ये जारी कर तरक़्क़ी में इज़ाफ़ा हो
सियासत मज़हबी हर वक़्त इमाम अच्छी नहीं हरगिज़
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'तुरंत' इक बार जो ठानी कि छूना आसमाँ तुमको
तो मेहनत में किसी सूरत ख़िराम अच्छी नहीं हरगिज़
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |
२७/०६/२०१९
शब्दार्थ - ज़िमाम =नकेल ,पैहम =निरंतर,
खू-ए-निज़ाम=व्यवस्था की आदत ,
तिफ़्ल=बच्चा , ख़ाम=कच्ची
ख़िराम=मंद गति
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
शुक्रिया आदरणीय गिरिराज भंडारी जी
आदरनीय गिरधारी भाई , बड़ी खूब सूरत ग़ज़ल कही , हार्दिक बधाई स्वीकार करें
//ज़रूरी शग़्ल है कोई मुहब्बत और पीरी में//
ये मिसरा अब ठीक है ।
//ख़िराम लूगत में स्त्रीलिंग ही लिखा था इसलिए इतेमाल किया//
आपकी लूग़त ग़लत जानकारी दे रही है,"ख़िराम" शब्द पुल्लिंग है ।
आदरणीय Samar kabeer साहेब ,आदाब ,आपकी
हौसला अफजाई और ज़र्रानवाज़ी का तहेदिल से शुक्रिया |शादो आबादो सेहतयाब रहें | नवाज़िशो करम क़ायम रहे |इस मिसरे को इस प्रकार संशोधित किया है -ज़रूरी शग़्ल है कोई मुहब्बत और पीरी में, ख़िराम लूगत में स्त्रीलिंग ही लिखा था इसलिए इतेमाल किया | सादर
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
'शग़ल कोई ज़रूरी है मुहब्बत और पीरी में'
इस मिसरे में 'शग़ल' ग़लत है,सहीह शब्द है "शग़्ल"21,इसके हिसाब से मिसरा बदलने का प्रयास करें ।
'तो मेहनत में किसी सूरत ख़िराम अच्छी नहीं हरगिज़'
इस मिसरे में 'ख़िराम' शब्द पुल्लिंग है,देखियेगा ।
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