श्वासों में....
मैं नहीं चाहता अभी
मृत्यु का वरण करना
प्रेम का वरण करना
शेष है अभी
श्वासों में
प्रतीक्षा की दहलीज़ पर
खड़े हैं कई स्वप्न
निस्तेज से
अवसन्न मुद्रा में
साकार होने को
मैं नहीं चाहता
सपनों की किर्चियों से
पलक पथ को रक्तरंजित करना
तिमिर गुहा में
यथार्थ से
साक्षात्कार करना
शेष है अभी
श्वासों में
अभी अनीस नहीं हुई
मेरी देह
ज़िंदा हैं आज भी
मेरी देह में गूंजती
स्पर्शों की किलकारियाँ
मेरे अबोले भावों की
सुलगती चिंगारियाँ
मैं नहीं चाहता
विछोह की अनिल में
स्वयं को भस्म करना
प्रेमाग्नि में
सूक्ष्म सम्बोधनों का
वरण करना
शेष है अभी
श्वासों में
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन आपकी आत्मीय प्रशंसा का आभारी है।
जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
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