कण-कण, क्षण-क्षण
मिटती घुटती शाम से जुड़ती
स्वयँ को सांझ से पहले समेट रही
विलुप्त होती अवशेष रोशनी
प्रस्थान करते इंजिन के धुएँ-सी ...
दिन की साँस है अब जा रही
मृत्यु, अब तू अपना मुखौटा उतार दे
हमारे बीच के वह कितने वर्ष
जैसे बीते ही नहीं
कैसी असाधारणता है यह
कैसी है यह अंतिम विदा
मैं तुम्हें याद नहीं कर रहा
तू कहती थी न
“ याद तो तब करते हैं
जब भूले हों किसी को "
गाड़ी स्टेशन छोड़ रही है . . .
कहीं ठहरता नहीं है मन आज
घने पेड़ों की छातियों से घाटियों के पीछे
विवश-यात्रा को जा रही है गंभीर शाम
गठरी संभाल मैं भी अब तैयारी कर लूँ
जानी-अनजानी-अनबूझी गलतियाँ अपनी
तुमसे माफ़ी मांग सब स्वीकार कर लूँ
धुएँ की आत्मा में चीखती अब अंतिम सीटी
गाड़ी अब किसी भी पल स्टेशन छोड़ने को है
काल-पीढ़ित खाली पटरी तब उदास पड़ी
तुम्हारे लिए भयावय होगी, दानवी होगी
उदास अकेले अंधियारे वीराने में
खुरदुरे खम्भे पर सिर टिकाए
भीतर के गहरे धक्के से घबराई
पथराई, टूट जायोगी, बिखर जायोगी तुम
अन्त:स्तल में छटपटाते अर्थहीन आवेशों में बह्ती
फिसलते विश्वासों से बढ़ती सरसराती यह पीर
फैली हथेली में लिए बुझे अरमानों की राख
यह जानता हूँ मैं, बिलख-बिलख रोओगी तुम
इससे पहले कि यह कठोर घनघोर दृश्य
तुम्हारी धड़कन को दे दे वेदना भीषण
देखते हुए, डरे-डरे, करुण-निवेदन है तुमसे
प्रिय "प्यार", तुम अभी लौट जाओ
गाड़ी स्टेशन छोड़ रही है
प्यार का वास्ता है, तुम लौट जाओ
-----------
-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मित्र C M Upadhyaay ji
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई समर कबीर जी
प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,हमेशा की तरह एक अच्छी रचना से रूबरू करवाया आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
"
धुएँ की आत्मा में चीखती अब अंतिम सीटी
गाड़ी अब किसी भी पल स्टेशन छोड़ने को है
काल-पीढ़ित खाली पटरी तब उदास पड़ी
तुम्हारे लिए भयावय होगी, दानवी होगी
उदास अकेले अंधियारे वीराने में
खुरदुरे खम्भे पर सिर टिकाए
भीतर के गहरे धक्के से घबराई
पथराई, टूट जायोगी, बिखर जायोगी तुम"
वाह ! बहुत खूब !!
जीवन की गाड़ी छूटने का सुन्दर काव्यमय दृश्य | बधाई vijay nikore जी |
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