आज फिर ... क्या हुआ
थरथरा रहा
दुखात्मक भावों का
तकलीफ़ भरा, गंभीर
भयानक चेहरा
आज फिर
दुख के आरोह-अवरोह की
अंधेरी खोह से
गहरी शिकायतें लिए
गहराया आसमान
आज फिर
ढलते सूरज ने संवलाई लाली में रंगी
कुछ खोती कुछ ढूँढ्ती
एक और मटमैली
उलझी-सी शाम
आज फिर
सिमटी हुई कुछ डरी-डरी
उदास लटकती शाम
डूबने को है ...
डूबने दो
मन में हलचल गहरी
मरूस्थल-सा सूखापन
एक और "आज" को जाते-जाते
इस आज की व्यथा-कथा
कहने दो
भटक गई हवायों को पलटने दो
आज फिर प्यार के दर्द के पन्ने
प्यार जो पागल-सा
तैर-तैर दीप्त आँखों में तुम्हारी
गया था नभ को छूने
आज फिर ...
ठहरता नहीं है "आज" मुठ्ठी में
रुकी है अभी गई-गुज़री कुछ रोशनी
अन्धेरा होने को है
सहने दो
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-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
सरहाना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई समर कबीर जी।
प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,हमेशा की तरह एक उम्द: और दिल को छू लेने वाली रचना हुई है आपकी,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारकरें ।
सरहाना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीया प्रतिभा जी
आज फिर ...
ठहरता नहीं है "आज" मुठ्ठी में
रुकी है अभी गई-गुज़री कुछ रोशनी
अन्धेरा होने को है
सहने दो//अप्रतिम भाव बहुत गहरे तक छूते हैं। बधाई इस सृजन पर आदरणीय विजय निकोर जी
सरहाना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय सुशील जी।
भटक गई हवायों को पलटने दो
आज फिर प्यार के दर्द के पन्ने
प्यार जो पागल-सा
तैर-तैर दीप्त आँखों में तुम्हारी
गया था नभ को छूने
आदरणीय विजय निकोर जी सादर प्रणाम , सर आपका सृजन पाषाणों की दरारों में छुपी अंतर्व्यथा की अभियक्ति को पृष्ठ पर साकार कर देता है। उलझनों से जूझती इस अनुपम कृति के लिए दिल से बधाई बधाई बधाई। सादर ...
सरहाना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय अजय तिवारी जी।
सरहाना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी।
सरहाना के लिए हार्दिक आभार, भाई समर कबीर जी। मेरा मनोबल बढ़ाए रखें।
सरहाना के लिए हार्दिक आभार,आदरणीय तेज वीर सिंह जी।
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