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जिनको हमने चुनकर भेजा,सत्ता के गलियारों में

उनको लड़ते देखा जैसे, श्वान लड़ें बाज़ारों में

 

कब क्या कैसे गुल ये खिलाते,कोई जान नहीं पाया

इनके असली रंग हैं दीखते, तीज और त्योहारों में

 

चोर उच्चके इनके आगे,पानी भरते फ़िरते हैं 

इनकी गिनती होती अब तो, बड़े बड़े अय्यारों में

 

जब-जब भी आवाज़ उठी है,इनके जुल्मों सितमों की

तब-तब मारा काटा फेंका, लाशों को अंगारों में

 

कहने को आज़ादी है पर,सब के मुँह पर ताले हैं

जुबां जो खोली नाम मिलेगा, अपना भी गद्दारों में

 

झूठे वादे झूठे इरादे, झूठी तकरीरें इनकी

वोट की खातिर नोट भी ये तो, बंटवाते कतारों में   

 

किसको फुर्सत है जनता के, दू:ख में जो शामिल होगा

अपने अपने अहम में तन के, बैठे सब चौबारों में

.

 -प्रदीप देवीशरण भट्ट –

1-5-2016 मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on August 25, 2019 at 2:27pm

जनाब प्रदीप जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

'वोट की खातिर नोट भी ये तो, बंटवाते कतारों में '  

इस पंक्ति में क़ाफ़िया काम नहीं कर रहा है,देखियेगा ।

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
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