असबंधा छंद "हिंदी गौरव
भाषा हिंदी गौरव बड़पन की दाता।
देवी-भाषा संस्कृत मृदु इसकी माता।।
हिंदी प्यारी पावन शतदल वृन्दा सी।
साजे हिंदी विश्व पटल पर चन्दा सी।।
हिंदी भावों की मधुरिम परिभाषा है।
ये जाये आगे बस यह अभिलाषा है।।
त्यागें अंग्रेजी यह समझ बिमारी है।
ओजस्वी भाषा खुद जब कि हमारी है।।
गोसाँई ने रामचरित इस में राची।
मीरा बाँधे घूँघर पग इस में नाची।।
सूरा ने गाये सब पद इस में प्यारे।
ऐसी थाती पा कर हम सब से न्यारे।।
शोभा पाता भारत जग मँह हिंदी से।
जैसे नारी भाल सजत इक बिंदी से।।
हिंदी माँ को मान जगत भर में देवें।
ये प्यारी भाषा हम सब मन से सेवें।।
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लक्षण छंद:-
"मातानासागाग" रचित 'असबंधा' है।
ये तो प्यारी छंद सरस मधु गंधा है।।
"मातानासागाग" = मगण, तगण, नगण, सगण गुरु गुरु
222 221 111 112 22= 14 वर्ण
दो दो या चारों चरण समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
वाह आदरणीय अति सुन्दर एवं सरस रचना..
आ. भाई बासुदेव जी, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
जनाब बासुदेव जी आदाब,हिन्दी दिवस पर अच्छे छन्द लिखे,बधाई स्वीकार करें ।
'हिंदी' को "हिन्दी" लिखना उचित होगा ।
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