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हमीं थे सच के करीब दिलबर यकीन तुमको दिलायें कैसे
नज़र से तुमने गिरा दिया जब नज़र में तुमको बसायें कैसे
मिज़ाज़ से तो गई नहीं है तुम्हारी यादें तुम्हारी बातें
जमीं से पौधा उखड़ गया पर हवा से खुशबू मिटायें कैसे
जो पकड़े बैठे हैं जिंदगी को वो अपने साये से डर गए हैं
तमाम दौलत कमा चुके हैं सुकून दिल का कमायें कैसे
ग़ज़ल की उंगली पकड़ के चलना सभी के गम में उदास होना
यही तो शाइर की जिंदगी है हम इसको नेमत बतायें कैसे
कोई मिलेगा तुम्हारे जैसा तो उससे पूछेंगे बात सारी
कहा था तुमको ही सच की सूरत सवाल तुम पर उठायें कैसे
यकीन तुझ पर नहीं रहा पर ये बात दिल में दबा ली हमने
खिलौना जिसने बना दिया है उसे तमाशा बनायें कैसे
निकल गये थे वो मुँह अंधेरे मगर मुसाफ़िर मिले नहीं हैं
जहाँ हो बिजली से सामना अब वहाँ यें रिक्शा चलायें कैसे
जिसे समझते थे जिंदगी हम वो जिंदगी का फरेब था इक
वो आइना जो किरच किरच है उसे सहन में सजायें कैसे
वो मेरे आने के बाद आये हसीन महफिल की रोशनी में
हैं उन पे नज़रे जमाने भर की उन्हीं से नजरें चुरायें कैसे
हज़ार कसमें बंधी हुई है हमारे जीवन से बेबसी की
तलब के मारे यें होंठ प्यासे मधु से खुद को जलायें कैसे
ख्याल तेरा नहीं है लेकिन हमारी नींदें बिछड़ गई है
खुदाया हमको बता दे कोई ये झूठ उसको बतायें कैसे
हमारा पहलू जकड़ने वाली पुरानी यादों बता दो हमको
जो दर्द हो तो निभायें कैसे न निभ सके तो गवायें कैसे
बदल गया है गणित जहां का हमें पर इतनी समझ कहां है
जिसे मिलाकर हुए थे पूरे अब उसको खुद से घटायें कैसे
ग़ज़ल जो हमने सुलग रही है अज़ाब है या शबाब इसको
दिखायें कैसे,छुपायें कैसे, बनायें कैसे, सजायें कैसे
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय समर कबीर साहब
आपकी बहुमूल्य इस्लाह के बिना ग़ज़ल अधूरी रह जाती है
आशीर्वाद बनाये रखिये
सादर
आदरणीय भाई मुसाफ़िर जी हार्दिक आभार
सादर
जनाब मनोज कुमार अहसास जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें।
'वो आइना जो किरच किरच है उसे सहन में सजायें कैसे'
इस मिसरे में सहीह शब्द 'सह्न' है और इसका वज़्न 21 होता है,देखियेगा ।
'ग़ज़ल जो हमने सुलग रही है अज़ाब है या शबाब इसको'
इस मिसरे में 'हमने' को "हम में" कर लें ।
कुछ शब्दों में टंकण त्रुटियाँ देख लें ।
आ. भाई मनोज जी, गजल का प्रयास अच्छा हुआ है । हार्दिक बधाई।
आदरणीय डॉ छोटे लाल जी हार्दिक आभार
सादर
आदरणीय मनोज जी बहुत अच्छी गजल हुई विचार और भाव दोनों का अच्छा मिश्रण है बधाई हो
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