For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नन्हा सा, अल्हड़ सा, वो प्यारा बचपन,

ज़िंदगी की धूप से अछूता बचपन

 

बचपन के वो दिन कितने अच्छे थे

जब संग सबके हम खेला करते थे

दुखी होते थे एक खिलौने के टूटने पर

और छोटी सी ज़िद्द पूरी होने पर,खुश हो जाया करते थे

हँसता, खिलखिलता वो निराला बचपन

ज़िंदगी की धूप से अछूता बचपन

 

वो बारिश के मौसम का भीगना याद आता है

वो सर्दी में एक रज़ाई मे लिपटना याद आता है

ज़रा सी बात पर रूठना एकदुसरे से और,

पलभर मे खुद ही मान जाना याद आता हैं

अटूट से बंधन जोड़ता, वो सयाना बचपन

ज़िंदगी की धूप से अछूता बचपन

 

हर नज़र अजनबी है आज,हर रिश्ता है बेमानी,

फूँक फूँक कर रखना है कदम,ये राहे है अंजानी

भूल हो जाने पेर जो माफ़ किया करते थे,

सर पेर रखकर हाथ जो हौसले दिया करते थे!

वो संग नहीं है अपने अब,खो गया है वो बचपन

ज़िंदगी की धूप से अछूता बचपन

 

कल की फिक्र मे उम्र गुजारते जा रहे है,

अधूरे सपनो को पाने मे कहीं खोते जा रहे है,

आगे बढने की होड़ मे मासूम मन को कुचलते हुए

खुद को भूलकर बस बड़े होते जा रहे हैं

कभी आवाज़ आती है अंतर्मन से

काश लौट आए एक बार फिर वही हमारा बचपन

नन्हा सा, अल्हड़ सा, वो प्यारा बचपन,

ज़िंदगी की धूप से अछूता बचपन

नन्हा सा, अल्हड़ सा, वो प्यारा बचपन,

Views: 883

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vasudha Nigam on June 30, 2011 at 1:09pm
thanks a lot everybody
Comment by DR SHRI KRISHAN NARANG on June 30, 2011 at 1:08pm
Bahut Acchi kavita hai. Kya bhaav hain. Isse main apne mitron ke saath padhna chhahonga. Meri ore se lekhika ko bahut bahut badhai.
Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on June 30, 2011 at 12:54pm

"वसुधा जी " ......, आप की कविता,बचपन की याद ताजा करती दिल की भावनाओं को छू रही है ! बचपन से खूबसूरत और क्या होगा। वैसे पुराने दिनों की याद करने बैठो तो ज्यादा कुछ याद नहीं रह जाता , बस कुछ धुंधली, कुछ स्पष्ट  थोड़ी  सी  यादें   ही मन को बहुत बड़ा सुकून दे जाती है !  बचपन को याद दिलाने के लिए आप को बहुत-बहुत धन्यवाद..............

Comment by Neelam Upadhyaya on June 30, 2011 at 12:29pm
Bahut hi sunder.
Comment by Deepak Sharma Kuluvi on June 30, 2011 at 11:31am
SUNDAR BACHPAN,PYARA BACHPAN

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service