रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया,
औरों को खुशियाँ देने को, छुप-छुप के रोना सीख लिया।
ताने उलाहने सुन कर हम बने रहे हर बार अंजान,
वो यूं ही सताते रहे हमे समझा न कभी हमे इंसान।
मेरी आंखो के सागर का बूंद-बूंद तक लूट लिया और,
रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया।
मेरे मन की गहराई मे अब उलझनों का घेरा हैं
हर रात बीते रुसवाई मे, बेबस हर सवेरा है।
मौसम की कड़ी तपन मे घावों को सीना सीख लिया…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on September 3, 2013 at 9:51pm — 17 Comments
मत लुटना मीठी मुसकानों पर,
ये जिस्मों की एक बनावट हैं,
कंकरीले-पथरीले रास्तों का हैं सफर,
ऊपर फूलों की बस सजावट हैं,…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on September 27, 2012 at 1:30pm — 1 Comment
रिहा कर खूबसूरत दिखने की चाह की कैद से मुझे,
ए आईने मेरी सादगी को ज़मानत दे दे।
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हम समता करना सीख गए सुख और दुख के हर रंग में,…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on July 27, 2012 at 11:30am — 12 Comments
एक अलसाई सी सुबह थी, सब काम निबटा कर बस बैठी ही थी मैं मौसम का मिजाज लेने। कुछ अजीब मौसम था आज का, हल्की हल्की बारिश थी जैसे आसमान रो रहा हो हमेशा की तरह आज न जाने क्यो मन खुश नहीं था बारिश को देखकर, तभी मोबाइल की घंटी बजी, दीदी का फोन था ‘माँ नहीं रही’। सुनकर कलेजा मुह को आने को था दिल धक्क, धड़कने रुकने को बेचैन, कभी कभी हम ज़ीने को कितने मजबूर हो जाते है जबकि ज़ीने की सब इच्छाएँ मर जाती है। मेरी माँ मेरी दोस्त मेरी गुरु एक पल में मेरे कितने ही रिश्ते खतम हो गए और मैं ज़िंदा उसके बगैर…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on July 17, 2012 at 3:30pm — 12 Comments
तू मेरे लिए परियों का रूप है जैसे,
कड़कती ठंड मे सुहानी धूप हैं जैसे,
तू हैं सुबह चिड़ियो की चहचहाहट जैसी,
या फिर कोई निश्छल खिलखिलाहट जैसी।
तू हैं मेरी हर उदासी के मर्ज की दवा जैसी,
या उमस मे चली शीतल हवा जैसी।
तू मेरे आँगन मे फैला कोई उजाला है जैसे,
या मेरे गुस्से को लगा कोई ताला है जैसे।
वो पहाड़ की चोटी पे सजी सूरज की किरण है जैसे,
या चाँदनी बन करती वो सारी ज़मीन रोशन हैं जैसे
मेरी आँख मे आँसू आते ही मेरे संग संग वो भी…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on May 24, 2012 at 12:19pm — 9 Comments
माँ को महसूस करती हूँ उनके अंदर ही,
जब दुनिया मे आऊँगी, मुझसे मिलने पापा आओगे न।
दिन भर आपका रास्ता देखती हूँ मै,
शाम को आकर मुझे अपनी बाहों का झूला, पापा झूलाओगे न।
आपके संरक्षण मे खुद को सुरक्षित महसूस करती हूँ मै,
यूं ही पूरा जीवन मुझे सुरक्षित महसूस, पापा कराओगे न।
छोड़ के अपना प्यारा आँगन,किसी और का घर सजाना हैं,
बेटी से बहू बनने तक का सफर पापा पूरा कराओगे न।
Added by Vasudha Nigam on February 24, 2012 at 5:52pm — 1 Comment
ये तेरी बेरुखी की इंतेहा है या मेरी ख्वाहिशों का कसूर,
आज भी रोने के लिए हम तेरे शाने को तरसते हैं।
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तेरे साथ ही हूँ मगर अब वो एहसास नहीं दिखता,
जो गुदगुदा जाता था मुझे, कभी बस राहों मे तेरे मिल जाने से !
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दिल में सोई हुई तमन्नाओ का इज़हार करके देखो,
ज़िंदगी कितनी खूबसूरत है, किसी से प्यार करके…
Added by Vasudha Nigam on January 13, 2012 at 10:00am — 6 Comments
ज़िन्दगी का सफ़र कितना ही कठिन हो मगर,
हँस कर गुज़ार ही लूंगी!
संघर्षो की तपती धूप में तपकर,
अवसादों की गहरी छाया में चलकर,
मंजिल को पा ही लूंगी!
लम्बी पगडंडियों में चलते चलते अक्स
काँटों की छुअन से मनन विचलित होता हैं,
तो भी इस कटीली छुअन से ज़िन्दगी का सार ही लूंगी!
Added by Vasudha Nigam on July 28, 2011 at 1:00pm — 2 Comments
यूँ ज़िन्दगी में आया पहला प्यार
जैसे रेत की तपन में पड़ गई सावन की फुहार
तुमको देखा तो लगा की बस यहीं हैं
जिस पर करना हैं अपना सब कुछ निसार
घंटो छत पर कड़ी धुप में खड़े रहते थे हम
इस इंतज़ार में की बस एक बार हो जाये तेरा…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on July 25, 2011 at 3:37pm — 4 Comments
वो नन्हा सा था,
थे पंख उसके छोटे, छोटी सी थी काया,
नन्ही सी उन आँखों में जैसे पूरा गगन समाया!
सोचती थी कैसे उड़ेगा....
छोटी छोटी प्यारी आँखों में उड़ने का था सपना,
पंख फैला सर्वत्र आकाश को बनाना था अपना,
हर कोशिश के बाद मगर फिसल-फिसल वो जाता!
सोचती थी कैसे उड़ेगा....
इक दिन फिर नन्हे-नन्हे से पर उसके थे खुले,
थी शक्ति क्षीण मगर बुलंद थे होंसले,
पूरी हिम्मत समेट कर घोसले से वो कूदा!
सोचती थी कैसे…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on July 19, 2011 at 10:06am — 3 Comments
Added by Vasudha Nigam on July 5, 2011 at 1:00pm — 1 Comment
तुझे बाहों मे भर लेने का,
तेरे कंधे रख के सर रोने का,
तुझसे मॅन का दर्द कह देने का,
माँ बड़ा दिल करता है!
तेरी उंगली पकड़ फिर चलने का,
तेरे साए मे बैठे रहने का,
तेरी लॉरी सुन कर सोने का,
माँ बड़ा दिल करता है!
दूर है तू मुझसे,या छुपी हुई है मुझमे ही,
ढूंडती हून तुझको हर कही,
तेरे आँचल मे छुप जाने का,
माँ बड़ा दिल करता…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on June 30, 2011 at 1:40pm — No Comments
नन्हा सा, अल्हड़ सा, वो प्यारा बचपन,
ज़िंदगी की धूप से अछूता बचपन
बचपन के वो दिन कितने अच्छे थे
जब संग सबके हम खेला करते थे
दुखी होते थे एक खिलौने के टूटने पर
और छोटी सी ज़िद्द पूरी होने पर,खुश हो जाया करते थे
हँसता, खिलखिलता वो निराला बचपन
ज़िंदगी की धूप से अछूता बचपन
वो बारिश के मौसम का भीगना याद आता…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on June 29, 2011 at 10:00am — 15 Comments
ज़िन्दगी तुझे जी लूंगी मैं...
नाकामियों से ऊपर उठते हुए,
समय के आगे न झुकते हुए,
मुश्किलों से हंस कर मिलूंगी मैं!
ज़िन्दगी तुझे जी लूंगी मैं...
रुठेंगी कब तक मंजिलें मुझसे,
मायूस होगी कब तक महफ़िलें मुझसे,
तूफ़ान भी अब डिगा न सकेंगे,
लहरों के वेग से अब न डरूँगी मैं!
ज़िन्दगी तुझे जी लूंगी मैं...
भिगोया हैं बहुत आँचल को अपने,
अरसा गुज़र गया मुस्कुराहटो की तलाश में,
अब भीगी पलकों पर…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on June 28, 2011 at 2:30pm — 4 Comments
विश्वासघात, क्या होता हैं यह विश्वासघात,
जो हिला देता हैं आपका संपूर्ण वजूद!
या फिर वो जो खोखला कर देता हैं आपकी जड़ो को,
और उठा देता हैं आपका विश्वास दुनिया से,
और क्या परिभाषा होता है विश्वास की,
जो बना देती हैं गिरो को भी अपना!…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on June 27, 2011 at 12:00pm — No Comments
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