रिहा कर खूबसूरत दिखने की चाह की कैद से मुझे,
ए आईने मेरी सादगी को ज़मानत दे दे।
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हम समता करना सीख गए सुख और दुख के हर रंग में,
मासूमियत अपनी हार गए पर जीवन की इस जंग में।
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बरसती हुई बूंदों ने आँख से आँसू भो छलका दिये,
बारिश का उसकी यादों से रिश्ता बड़ा पुराना हैं।
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मेरे खुदा ले चल ऐसे मंजर पर मेरे कदम,
जहां न कुछ पाने की खुशी हो, न कुछ खोने का गम
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Comment
आभार सतीश जी
खूबसूरती और सादगी का मिश्रण आपकी ये पंक्तियाँ वाकई कमाल है ...........
आदरणीय हराश जी एवं राज़ जी बहुत आभार
रिहा कर खूबसूरत दिखने की चाह की कैद से मुझे,
ए आईने मेरी सादगी को ज़मानत दे दे।
बहुत खूब वसुधा जी !
"
बरसती हुई बूंदों ने आँख से आँसू भो छलका दिये,
बारिश का उसकी यादों से रिश्ता बड़ा पुराना हैं।"
बहुत सुन्दर वसुधा जी ।
आदरणीय मित्रजनों आप सभी का बहुत आभार, आपलोगो से ही प्रेरणा मिलती है
अभी बहुत सीखना है इस मंच पर।
मेरे खुदा ले चल ऐसे मंजर पर मेरे कदम,
जहां न कुछ पाने की खुशी हो, न कुछ खोने का गम ,वसुधा जी अति सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई
मेरे खुदा ले चल ऐसे मंजर पर मेरे कदम,
जहां न कुछ पाने की खुशी हो, न कुछ खोने का गम....sunder bhawana.se yukt gazal...
वाह
वसुधा जी
वाह !
धन्यवाद अरुण जी एवं सुरेन्द्र जी,
आप सब से ही सीखने का प्रयत्न कर रही हूँ।
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