तू मेरे लिए परियों का रूप है जैसे,
कड़कती ठंड मे सुहानी धूप हैं जैसे,
तू हैं सुबह चिड़ियो की चहचहाहट जैसी,
या फिर कोई निश्छल खिलखिलाहट जैसी।
तू हैं मेरी हर उदासी के मर्ज की दवा जैसी,
या उमस मे चली शीतल हवा जैसी।
तू मेरे आँगन मे फैला कोई उजाला है जैसे,
या मेरे गुस्से को लगा कोई ताला है जैसे।
वो पहाड़ की चोटी पे सजी सूरज की किरण है जैसे,
या चाँदनी बन करती वो सारी ज़मीन रोशन हैं जैसे
मेरी आँख मे आँसू आते ही मेरे संग संग वो भी रोती है,
मेरे मन को ठंडक देती है वो गले मे बाँहें डाल के सोती हैं।
तू वो जज़्बात है जो बिना कहे भी सब समझ लेती है,
तू वो एहसास हैं जो मुझे जीने की वजह देती हैं।
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Comment
aap sabhi ka dhanywaad
तू हैं सुबह चिड़ियो की चहचहाहट जैसी,
या फिर कोई निश्छल खिलखिलाहट जैसी।|
vasudha ji ,bahut khuub ,badhaai
बेहद कोमल भावों की इतनी सरलतम और सुन्दर - मनोरम अभिव्यक्ति हार्दिक बधाई आपको | रचना देर तक अपना प्रभाव छोड़ने वाली है यही इसकी सफलता है !!
भावात्मक दृष्टि से एक शानदार रचना है। बधाई
margdarshan karne k liye dhanyawaad aap sabhi ka
तू मेरे लिए परियों का रूप है जैसे,
कड़कती ठंड मे सुहानी धूप हैं जैसे,
तू हैं सुबह चिड़ियो की चहचहाहट जैसी,
या फिर कोई निश्छल खिलखिलाहट जैसी।
तू हैं मेरी हर उदासी के मर्ज की दवा जैसी,
या उमस मे चली शीतल हवा जैसी।
तू मेरे आँगन मे फैला कोई उजाला है जैसे,
या मेरे गुस्से को लगा कोई ताला है जैसे।
वो पहाड़ की चोटी पे सजी सूरज की किरण है जैसे,
या चाँदनी बन करती वो सारी ज़मीन रोशन हैं जैसे
मेरी आँख मे आँसू आते ही मेरे संग संग वो भी रोती है,
मेरे मन को ठंडक देती है वो गले मे बाँहें डाल के सोती हैं।
तू वो जज़्बात है जो बिना कहे भी सब समझ लेती है,
तू वो एहसास हैं जो मुझे जीने की वजह देती हैं।
wah!Vassudha ji.
तू हैं सुबह चिड़ियो की चहचहाहट जैसी,
या फिर कोई निश्छल खिलखिलाहट जैसी।
तू मेरे आँगन मे फैला कोई उजाला है जैसे,
या मेरे गुस्से को लगा कोई ताला है जैसे।
तू वो एहसास हैं जो मुझे जीने की वजह देती हैं।
haan vo meri beti hai , bahut sundar bhavna. jine ka ahsaas deti hai badhai.
प्रयास बहुत ही बढ़िया है, और कसावट चाहिए इस रचना में, बधाई स्वीकारें |
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