For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तू मेरे लिए परियों का रूप है जैसे,

कड़कती ठंड मे सुहानी धूप हैं जैसे,

तू हैं सुबह चिड़ियो की चहचहाहट जैसी,

या फिर कोई निश्छल खिलखिलाहट जैसी।

तू हैं मेरी हर उदासी के मर्ज की दवा जैसी,

या उमस मे चली शीतल हवा जैसी।

तू मेरे आँगन मे फैला कोई उजाला है जैसे,

या मेरे गुस्से को लगा कोई ताला है जैसे।

वो पहाड़ की चोटी पे सजी सूरज की किरण है जैसे,

या चाँदनी बन करती वो सारी ज़मीन रोशन हैं जैसे

मेरी आँख मे आँसू आते ही मेरे संग संग वो भी रोती है,

मेरे मन को ठंडक देती है वो गले मे बाँहें डाल के सोती हैं।

तू वो जज़्बात है जो बिना कहे भी सब समझ लेती है,

तू वो एहसास हैं जो मुझे जीने की वजह देती हैं।

………………………

Views: 430

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vasudha Nigam on May 26, 2012 at 8:35pm

aap sabhi ka dhanywaad

Comment by Rekha Joshi on May 26, 2012 at 6:34pm

तू हैं सुबह चिड़ियो की चहचहाहट जैसी,

या फिर कोई निश्छल खिलखिलाहट जैसी।|

vasudha ji ,bahut khuub ,badhaai 

Comment by Abhinav Arun on May 26, 2012 at 3:00pm

बेहद कोमल भावों की इतनी सरलतम  और सुन्दर - मनोरम अभिव्यक्ति हार्दिक बधाई आपको | रचना देर तक अपना प्रभाव छोड़ने वाली है यही इसकी सफलता है !!

Comment by आशीष यादव on May 26, 2012 at 9:31am

भावात्मक दृष्टि से एक शानदार रचना है। बधाई

Comment by Vasudha Nigam on May 25, 2012 at 11:09am

margdarshan karne k liye dhanyawaad aap sabhi ka 

Comment by AVINASH S BAGDE on May 25, 2012 at 11:00am

तू मेरे लिए परियों का रूप है जैसे,

कड़कती ठंड मे सुहानी धूप हैं जैसे,

तू हैं सुबह चिड़ियो की चहचहाहट जैसी,

या फिर कोई निश्छल खिलखिलाहट जैसी।

तू हैं मेरी हर उदासी के मर्ज की दवा जैसी,

या उमस मे चली शीतल हवा जैसी।

तू मेरे आँगन मे फैला कोई उजाला है जैसे,

या मेरे गुस्से को लगा कोई ताला है जैसे।

वो पहाड़ की चोटी पे सजी सूरज की किरण है जैसे,

या चाँदनी बन करती वो सारी ज़मीन रोशन हैं जैसे

मेरी आँख मे आँसू आते ही मेरे संग संग वो भी रोती है,

मेरे मन को ठंडक देती है वो गले मे बाँहें डाल के सोती हैं।

तू वो जज़्बात है जो बिना कहे भी सब समझ लेती है,

तू वो एहसास हैं जो मुझे जीने की वजह देती हैं।

wah!Vassudha ji.

Comment by AVINASH S BAGDE on May 25, 2012 at 10:57am

तू हैं सुबह चिड़ियो की चहचहाहट जैसी,

या फिर कोई निश्छल खिलखिलाहट जैसी।

तू मेरे आँगन मे फैला कोई उजाला है जैसे,

या मेरे गुस्से को लगा कोई ताला है जैसे।

तू वो एहसास हैं जो मुझे जीने की वजह देती हैं।

Vasudha Nigam JI wah!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 24, 2012 at 6:26pm

haan vo meri beti hai , bahut sundar bhavna.  jine ka ahsaas deti hai badhai. 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 24, 2012 at 5:12pm

प्रयास बहुत ही बढ़िया है, और कसावट चाहिए इस रचना में, बधाई स्वीकारें |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
4 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
6 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service