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हौसला जिसका मर नहीं सकता
मुश्किलों से वो डर नहीं सकता
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लोग कहते हैं ज़ख़्म गहरा है
मुद्दतों तक ये भर नहीं सकता
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उनकी आदत है यूँ डराने की
मेरी फ़ितरत है डर नहीं सकता
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जब तलक ख़ुद ख़ुदा नहीं चाहे
बद-दुआओं से मर नहीं सकता
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उनकी आदत है वो मुकर जाए
मैं कभी भी मुकर नहीं सकता
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जिसने महदूद ख़्वाहिशें कर ली
कोई लालच वो कर नहीं सकता
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लाख फ़ितरत की ज़ुल्फ़ सुलझाओ
बिगड़ा ख़ाका सुधर नहीं सकता
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"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
अब बेहतर है लेकिन काम बाकी है .. दो शेर आदत के ऊला पर खटक रहे हैं
सादर
आदरणीय दिगंबर नासवा जी मोहब्बत के लिए बहुत शुक्रिया.
वाह ... कुछ शेर तो कमाल हैं ... दूर की बात कहते हुए ...
बहुत बधाई इस ग़ज़ल की ...
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