याद बीते कल का वो सुख क्यों करें
ऐसे दूना अपना ही दुख क्यों करें।१।
पंक की कर मन्च से आलोचना
और गँदला बोलिए मुख क्यों करें।२।
छोड़ दुत्कारों से आये तब भला
उनके घर की ओर आमुख क्यों करें।३।
एक भी छाता न हो जिस शह्र में
बारिशें उस शह्र का रूख क्यों करें।४।
इसकी उनके पास में जब ना दवा
उनसे अपना फिर बयाँ दुख क्यों करें।५।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए दिल से आभार ।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,तंग क़वाफ़ी में ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।
'बारिशें उस शह्र का रूख क्यों करें'
इस मिसरे में क़ाफ़िया दोष है,सहीह शब्द है "रुख़" ।
'इसकी उनके पास में जब ना दवा'
ग़ज़ल में 'न' को 2 पर लेना उचित नहीं,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-
'पास उनके जब नहीं इसकी दवा'
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