२२१/ २१२१/ २२२/१२१२
रस्ते सभी जहाँ के ढब आसान जिंदगी
तू ही उलझ के रह गयी नादान जिंदगी।१।
पानी हवा बहुत है यूँ जीने के वास्ते
करती इकट्ठा मौत का सामान जिंदगी।२।
जीवन नहीं करे है तू जीवन सा पर करे
सासों पे झूठ - मूठ का अहसान जिंदगी।३।
क्यूबा बनी सोमालिया, ईराक, सीरिया
कब होगी तू पता नहीं जापान जिन्दगी।४।
देती है उसको मान ढब आती है मौत जब
करती नहीं है खुद का पर सम्मान जिंदगी।५।
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए आभार।
आपकी गज़ल अच्छी लगी । हार्दिक बधाई, मित्र लक्ष्मण जी।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति से मान बढ़ाने और मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद । इराक की जगह ईरान लेने पर कैसा रहेगा मार्गदर्शन कीजिए।
आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'क्यूबा बनी सोमालिया, ईराक, सीरिया'
इस मिसरे में सहीह शब्द 'इराक़' है,देखियेगा ।
वाह आदरणीय बड़ी ही खूब ग़ज़ल कही...बधाई
आ. भाई केवल प्रसाद जी, उत्साहवर्धन के लिए आभार।
आ. धामी भाई जी, आपकी एक अच्छी सोच ने गजल को बहुत पास से किया है. मुबारक हो.
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