2×15
कोई दरिंदा घात लगाकर जब घर में ही बैठा हो,
सहमी हुई मासूम कली का कितना बड़ा दुपट्टा हो.
अपनी बीवी के अश्कों की वो भी कद्र नहीं करता,
जिसने मम्मी को बचपन में रोज सिसकते देखा हो.
वक्त जरूरत पर ये दुनिया बेपर्दा हो जाती है,
दुनिया वाले तू भी मुझ पर थोड़ा सा बेपर्दा हो.
मेरे बच्चों में इक बच्चा ऐसा भी हो मेरे ख़ुदा,
मेरे जैसा दिल हो उसका ,उसके जैसा दिखता हो.
हमने कल्पना ऐसी बगिया की जाने क्योंकर कर ली,
जिसमें ऐसे फूल खिलें जो सारी जिंदगी ताजा हो.
मैं अपने टूटे सपनों को सोच सोच पछताता हूँ,
जब कोई कहता है सबका तेरे जैसा बेटा हो.
पूछ पूछ कर हार गया मैं लोगों से तेरी बातें,
ऐसा कोई नहीं मिला जो तेरा खेल समझता हो.
चार कहानी सुना लुटेरे दुनिया को बहलाते हैं,
ऐसा कोई पीर दिखा दे जिसने तुझको देखा हो.
तन्हाई का दामन पकड़े इतनी दूर चले आए,
अब यह सोचके क्या हासिल है आगे रस्ता कैसा हो.
बचपन के वो साथी जो आंखों में सब पढ़ लेते थे,
मेरी गजलें यूँ पड़ते हैं जैसे सब कुछ झूठा हो.
खामोशी की ठंडी झील में उसने बिता दिया जीवन,
शायद दूर अटारी पे कोई आस का दीपक जलता हो.
हमने विदेशों से सीखी है स्वागत की ये परिपाटी,
आंखों में लोलुपता हो और हाथों में गुलदस्ता हो.
खुद से खुद के छुटकारे का एक तरीका ये ही है,
अपने हिस्से के दुख अपने खुशियों पर हक सबका हो.
'अहसास' कलम रखने से पहले बस इतना ही कहना है,
आप भी कुछ ऐसा लिखना जो मुझको अपना लगता हो.
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब
इस ग़ज़ल पर पुनः काम करता हूँ
सादर
जनाब मनोज कुमार अहसास जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'कोई दरिंदा घात लगाकर जब घर में ही बैठा हो,
सहमी हुई मासूम कली का कितना बड़ा दुपट्टा हो'
मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ।
'वक्त जरूरत पर ये दुनिया बेपर्दा हो जाती है'
इस मिसरे का शिल्प कमज़ोर है,यूँ कर सकते हैं:-
'वक़्त पड़े तो ये दुनिया भी बे पर्दा हो जाती है'
'मेरे बच्चों में इक बच्चा ऐसा भी हो मेरे ख़ुदा,
मेरे जैसा दिल हो उसका ,उसके जैसा दिखता हो'
इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ ।
'हमने कल्पना ऐसी बगिया की जाने क्योंकर कर ली,
जिसमें ऐसे फूल खिलें जो सारी जिंदगी ताजा हो'
इस शैर की लय बाधित है ।
'मैं अपने टूटे सपनों को सोच सोच पछताता हूँ,
जब कोई कहता है सबका तेरे जैसा बेटा हो'
इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ ।
'चार कहानी सुना लुटेरे दुनिया को बहलाते हैं,
ऐसा कोई पीर दिखा दे जिसने तुझको देखा हो'
इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ ।
'बचपन के वो साथी जो आंखों में सब पढ़ लेते थे,
मेरी गजलें यूँ पड़ते हैं जैसे सब कुछ झूठा हो'
इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ ।
'खामोशी की ठंडी झील में उसने बिता दिया जीवन,
शायद दूर अटारी पे कोई आस का दीपक जलता हो'
इस शैर की लय बाधित है ।
'हमने विदेशों से सीखी है स्वागत की ये परिपाटी'
इस मिसरे की लय बाधित है,इसे यूँ कर सकते हैं:-
'हमने ग़ैरों से सीखी है स्वागत की ये परिपाटी'
'अहसास' कलम रखने से पहले बस इतना ही कहना है'
ये मिसरा लय में नहीं है ।
कुल मिलाकर ग़ज़ल अभी समय चाहती है ।
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